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________________ ४१६ जैन महाभारत रथ पर तीनो सवार थे, सघन वन से हो कर रथ जा रहा था. प्राकृतिक सौंदर्य को देखने की इच्छा हुई। वन की ओर अनाधृष्टि ने अश्वों की बाग मोड़ दी। परन्तु वन मे से रास्ता पाना कठिन होता ही है ।१ आगे वृक्षों को देख कर अनाधृष्टि ने रथ पीछे घुमाना चाहा । पर उसी समय कृष्ण रथ से उतर पड़े, उन्होंने कितने ही सूखे वृक्षों को उखाड़ डाला, और रास्ता बना दिया। अकेले कृष्ण द्वारा वृक्ष उखाड़े जाते देख, अनावृष्टि को बड़ा आश्चर्य हुआ और वह समझ गया कि कृष्ण की तुलना अच्छे वीरों से हो सकती है। इसी प्रकार वन-उपवनो में घूमते हुए यह तीनों मथुरा पहुंच गए और वहाँ पहुंचकर सीधे स्वयंवर मण्डप मे चले गए। ___ स्वयवर मण्डप में कितने ही नृप बैठे हुए मूछों पर ताव दे रहे थे। सभी को अपने पर विश्वास था कि वही शारङ्ग धनुष पर बल चढ़ा सकता है। कितनों को प्रतीक्षा थी उस क्षण की कि जब वे अपने बल का प्रदर्शन सैंकड़ों नरेशों के बीच करेंगे और विजय श्री उनके चरण चूमेगी, सत्यभामा उन्हें मिलेगी। जब समस्त नरेश सावधानी से अपने अपने स्थान पर बैठ गए, तो शृगार युक्त सत्यभामा धीरे से आकर शारङ्ग धनुष के पास लक्ष्मी रूप में आ खड़ी हुइ। उस समय सभी नरेश अपने मन ही मन कामना करने लगे कि यह परम सुन्दरी उन्हीं के गले में वरमाला डाले । मंत्री ने घोषणा की कि "जो वीर इस धनुष पर पूरी तरह खींच कर वाण चढ़ा देगा, सत्यभाम उसी के गले में वरमाला डाल देगी। ___ कस ने कहा- आज एक ऐसा समय है कि जिसने अपने बल, पौरुष पर अभिमान है, वह अपनी शक्ति का प्रदर्शन करके यश प्राप्त कर सकता है और साथ हो सत्यभामा को ग्रहण कर सकता है। यह केवल विवाह ही नहीं शक्ति प्रदर्शन भी है । अतएव आप लोग क्रमानुसार उठे और अपना बल आजमाएं।" इस घोषणा के पश्चात् क्रमानुसार नृप उठे। उन्होंने धनुष का निरीक्षण किया, हाथ लगाया, चिल्ला चढ़ाने का प्रयत्न किया और १ मार्ग मे चलते हुए अनाधृष्टि का रथ वृक्षो में फस गया था, अनाधृष्टि के लाख प्रयत्न करने पर भी रथ न निकल सका किन्तु श्री कृष्ण ने तत्काल ही वृक्ष उखाड़ दिये । पाठान्तर
SR No.010301
Book TitleShukl Jain Mahabharat 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShuklchand Maharaj
PublisherKashiram Smruti Granthmala Delhi
Publication Year1958
Total Pages617
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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