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________________ कस वध उसी तान को जिसने हमें रास्ते पर जाते हुए रोक लिया है। ___कृष्ण ने कहा-हम किसी की यात्रा में विघ्न नहीं डालना चाहते। अब आप जा सकते हैं। बात यह थी कि अनाधृष्टि की बात और उसके चेहरे के हाव भाव से वे समझ गए थे कि आगन्तुक अहकारी है। बलराम बात समझ गए। वे बोले-कृष्ण भैया, यह तो मेरे भाई हैं अनाधृष्टि।" अनाधृष्टि ने कृष्ण का परिचय मालूम किया-बलराम ने कहा यह कृष्ण है, केशी अश्व व अरिष्ट वृषभ को बिना किसी अस्त्र के मारने वाले । काली नाग को नाथने वाले और गोकुल के बेताज बादशाह यह गोकुल के वास्तविक नरेश है। सारा क्षेत्र इन्हे आदरणीय मानता है। और हमारे भाई हैं ?" "हमारे भाई कैसे ?" बलराम सब कुछ जानते थे फिर भी बात छिपाते हुए बोले "पिता जी इन से पुत्रवत् स्नेह करते हैं मेरे हृदय में इन्होंने भ्रात स्नेह की नई ज्योति प्रदान की है। मुझे अपना ज्येष्ठ भ्राता मानते हैं और इन का व्यवहार भी भ्रातृत्व का पूर्ण आदर्श है।" फिर तीनों में बातें होने लगीं। कृष्ण की प्रशसाए सुनकर अनाधृष्टि समझ गया कि कृष्ण को ग्वाला कहना उसका अपमान है। थोड़ी ही देर में तीनों आपस में हिल-मिल गए । अनाधृष्टि ने मुरली पर राग सुने । ओर इसी में सूर्य पश्चिम दिशा में जाकर लुप्त हो गया। गौएं लेकर कृष्ण गोकुल चक पड़े। अनावृष्टि ने भी अपना रथ गोकुल की ओर ही घुमा दिया । सारी रात्रि बातें हुई । अनाधृष्टि ने समझ लिया कि कृष्ण बहुत काम का वीर है । प्रातः उन्हें बलराम सहित अपने साथ मथुरा ले चला । श्री कृष्ण भी सत्यभामा के स्वयवर को देखना चाहते थे। सब से अधिक उत्सुकता तो उन्हें उस शारङ्ग धनुष को देखने की थी जिसे राजाओं की वीरता की कसौटी, शान समझ कर रखा गया था, वे देखने के लिए लालायित थे कि कौन उस पर बाण चढाता है ? अनाधृष्टि ने अपने बल की प्रशसाओं, आत्म प्रवचना का तूमार बांधा था, श्रीकृष्ण उस के बल को अपनी आखों से देखना चाहते थे। अतएव उस के साथ मथुरा जाने में उन्हे बहुत ही प्रसन्नता
SR No.010301
Book TitleShukl Jain Mahabharat 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShuklchand Maharaj
PublisherKashiram Smruti Granthmala Delhi
Publication Year1958
Total Pages617
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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