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________________ कर्ण की चुनौती ३६३ कर्ण आ रहा है, वह अपने कौशल व कला की परीक्षा देगा । शान्ति पूर्वक आप उस वीर की कला देखिये और प्रशसा कीजिए।" ____कर्ण अकडता हुश्रा सामने आया और गरज कर कहने लगा-"तुम लोग अभी तक अर्जुन का तमाशा देख कर उसकी प्रशसा के पुल बाध रहे थे, अर्जुन और उसके गुरु अब तक उसकी वीरता व कौशल की डींग हांक रहे थे। पर अब जब आप मेरी कला देखेंगे, भूल जायेगे अर्जुन को, उस अर्जुन को जो उन राजकुमारों में अपने को अद्वितीय होने का दावा करता है जिन बेचारो को अद्भुत कलाए सिखाई ही नहीं गई। अन्धों में काना तो सरदार बन ही जाया करता है । पर जब किसी वीर से सामना हो जाता है तो सारा दर्प धरा रह जाता है।" दर्शकों की भीड़ में से आवाज आई-"अर्जुन ने तुम्हारी तरह गाल नहीं बजाए थे। उन्होंने करके दिखाया है, तुम भी गाल मत बजाओ, जो कुछ करना है करके दिखाओ।" ___ इस आवाज को सुन कर कर्ण चुप हो गया। वह अपनी कला दिखाने लगा। वास्तव में उसने प्रशसनीय कला का प्रदर्शन किया। लोग उसकी प्रशसा करने लगे। तभी भीड़ में से किसी ने कहा कि-'वास्तव में यह वीर अर्जुन की जोड़ का है" पर कर्ण को यह बात भला क्यों स्वीकार होने वाली थी, वह गरजकर बोला--भोले दर्शकों अर्जुन अपने का अद्वितीय समझता है। आप भी उसे मेरी टक्कर का बता रहे है, पर वास्तविकता क्या है उसका पता आपको तब लगेगा जब आप मेरी और उसकी आपसी बल परीक्षा देखेंगे। अजुन का और मेरा धनुयुद्ध हो जाय तो पता लगेगा कि कौन वीर है ? अर्जुन मेरी टक्कर का है भी या नहीं।" कर्ण का कला दिखाना तो कोई बुरा नहीं था परन्तु उसको मन में अर्जुन को अपमानित करने की दुर्भावना थी जो किसी प्रकार भी उचित नहीं ठहराई जा सकती। कर्ण ने कला प्रदर्शन किया और उसकी लोगों ने प्रशसा की इससे वह अहकार से भर गया । वह ताल ठोंककर कहने लगा-"आप लोग अर्जुन की कला देखकर ही चौंधिया १ कही २ मल्ल युद्ध का भी वर्णन मिलता है ।
SR No.010301
Book TitleShukl Jain Mahabharat 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShuklchand Maharaj
PublisherKashiram Smruti Granthmala Delhi
Publication Year1958
Total Pages617
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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