SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 412
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जैन महाभारत ३६२ लगे - " यह ध्वनि किसकी है, कौन चीख रहा है ?" अभी लोगों का विस्मय शांत न हुआ कि सभा मण्डल में उसी समय एक वीर गरजता हुआ आता दिखाई दिया। वीर कवच कुण्डल पहने हुए था । उसके ललाट पर तेज विद्यामान था, उसके शरीर पर वीरता झलक रही थी मानो स्वय वीरता ही शरीर धारण करके आ गई हो। उसे देखते ही दर्शको में उत्सुकता जागृत हुई - " है । यह कौन वीर है ? यह किसका पुत्र है ? कोई बोल पड़ा "देखो कितना सुन्दर जवान है, अपने माँ बाप का बॉका सपूत -क्या खूब आया है इसके मुख मण्डल पर, रोम रोम से यौवन और वीरता टपक रही है ।" किसी ने कहा- यह वीर आखिर है कौन ? कहाँ से आया है यह ?" उसे आते देख लोगों की जिज्ञासा शान्त करने के लिए द्रोणाचार्य बोले- 'यह मेरा शिष्य कर्ण है । द्रोणाचार्य की बात सुनकर रोष पूर्वक उन्हें प्रणाम करके कर्ण कहने लगा - " अब आप मुझे शिष्य बताते है, आप यह छुपाते है कि आपने मुझे एक विद्या सिखलाने से इन्कार कर दिया था। आप तो अर्जुन की ही प्रशसा करते हैं । कर्ण को आया देख और उसकी बात सुनकर दुर्योधन प्रसन्न हो गया । वह सोचने लगा- मै अर्जुन की प्रशंसा सुनकर दुखित हो रहा था | अच्छा हुआ कर आ पहुँचा। मेरा भाग्य प्रबल है । इसी लिए तो कर्ण यहां आ गया। अब अजुन और दोणाचार्य दोनों की डींग हवा हो जायेगी । यह सोचकर वह बोला--- कर्ण वीर की भी परीक्षा होनी चाहिए | इसका बल एवं कौशल भी तो देखना चाहिए।" "नहीं, द्रोणाचार्य नहीं चाहते कि उनके कृपापात्र अर्जुन की बीरता के स्वाग को कोई तोड़ सके, वे भला मुझे क्यो जनता के सामने अपना कौशल प्रदर्शित करने की आज्ञा दगे ?" कर्ण ने ताना मारा । उसी समय द्रोणाचार्य ने दुर्योधन और कर्ण की उदण्डता से अप्रभावित होते हुए घोषणा की - " उपस्थित सज्जनो, अब आपके सामने
SR No.010301
Book TitleShukl Jain Mahabharat 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShuklchand Maharaj
PublisherKashiram Smruti Granthmala Delhi
Publication Year1958
Total Pages617
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy