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________________ शिष्य परीक्षा तब अर्जुन के धनुष से एक बारा और छूटा, जिसके प्रभाव से तिमिर लुप्त हो गया समस्त दर्शक आश्चर्य चकित थे ही कि अर्जुन ने एक वाण और छोडा जिसके प्रभाव से दर्शकों को वायुमण्डल में पर्वत उड़ते दिखाई देने लगे, लोग आँखे फाड़ फाड़कर देखने लगे । कुछ लोगों ने डर के मारे अपने सिर घुटनों में छुपा लिये । इस आशका से कि कहीं कोई पर्वत उन के ऊपर न आ गिरे और बह दबकर मर ही जायें । लोगों को भयभीत देख कर वीर अर्जुन ने एक वाण चला कर सभी पर्वतों को विलीन कर दिया । वाण चलाते समय अर्जुन कभी प्रकट रहता और कभी अप्रकट रह जाता था इस प्रकार उसने धनुविद्या की भली प्रकार परीक्षा दी, मानो कोई ऐन्द्रजालिक खेल दिखा रहा हो । धनुर्विद्या की परीक्षा समाप्त होने पर, अर्जन ने गुरुदेव के चरणों में प्रणाम किया, गुरुदेव ने आज्ञा दी कि "अब सूक्ष्म अस्त्रों के चलाने का कौशल दिखाओ " - गुरु आज्ञा से वह फिर परीक्षा स्थल में आया और उसने सूक्ष्म अस्त्रों का प्रदर्शन किया, कभी हाथी पर तो कभी अश्व पर और कभी रथ पर, कभी किसी रूपमें कभी किसी रूप में, अर्जुन आया । इन सब कलाओं को देखकर दर्शक मुग्ध हो गए लोग आपस में कहने लगे कि आचार्य का यह कथन ठीक ही था कि महान प्रकृति वाले की साधारण प्रकृति वालों के साथ परीक्षा नहीं होनी चाहिए। लोग वाह वाह, धन्य, धन्य की ध्वनि के साथ अर्जुन का अभिनन्दन करन लगे । कोई अर्जुन को धन्य कहता, कोई माता कुन्ती को धन्य कहता और कोई द्रोणाचार्य को धन्य कहता था । ३६१ ~ किन्तु उपस्थित दर्शकों में कोई भी ऐसा नहीं था जो यह जानता कि अर्जुन का कौशल किसी के लिए ईर्ष्याग्नि भी प्रज्वलित कर रहा है । हा, द्रोणाचार्य अवश्य ही कौरवों के चेहरे पर उमड़ते भावों को परख रहे थे । कर्ण की चुनौती इधर कौरव उदास, जले भुने बैठे थे, उधर अर्जुन गुरुदेव, पितामह आदि अन्य दर्शकों को प्रणाम करके अपने स्थान पर जा चुका था, कि अकस्मात ही बाहर से एक घोर शब्द सुनाई दिया। इस भयकर ध्वनि को सुनकर दर्शक समुदाय में खलबली मच गई। लोग सोचने
SR No.010301
Book TitleShukl Jain Mahabharat 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShuklchand Maharaj
PublisherKashiram Smruti Granthmala Delhi
Publication Year1958
Total Pages617
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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