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________________ शिष्य परीक्षा ३८५ अजुन को अलग खडा कर रखा है । इसका कारण यह है कि अर्जुन में धनुर्विद्या का असाधारण कोशल है । उसकेकोशल को पाप सब राजकुमारी के साथ नहीं देख सकते थे । इसीलिए मैंने उसे अलग खडा रखा है, क्योंकि अल्पशक्ति के साथ महाशक्ति का परिचय नहीं हो सकता, अतएव अर्जुन के कोशल को अलग में देखना ही उचित होगा वेसे मेरे समस्त शिक्षार्थी अन्य शिक्षार्थियों से उत्तम हैं।' द्रोणाचार्य की घोषणा सुनकर भीष्म आदि बहुत प्रसन्न हुए। धृतराष्ट्र कहने लगे---मैं आँखों से तो अँधा हूँ राजकुमारों का कौशल देख नहीं सकता। मुझे दुख है कि में अपने लाडलों के कौशल को भी देखने की शक्ति नहीं रखता। फिर भी कानो से तो सुन सकता हूँ। बाण छूटने की जो ध्वनियाँ अत्र तक मेरे कानों में आ रही थी उस से मैंने अनुभव किया है, जिस गति से आकाश में विजली कडकती है, उस गति से बाण छूट रहे थे । मैं अपने कानो से बडी प्रिय बाते सुन रहा हूँ। लोगों की करतल ध्वनि और प्रशसा सूचक बोल मेरे हृदय में उतरते जा रहे हैं।" गांधारी और कुन्ती आदि भी परीक्षा स्थल में थी ही, अपने सुपुत्रों की कला को देखकर उनका हृदय वॉसों उछलने लगा। अर्जुन जव धनुष वाण लेकर सामने आया तो सभी स्वांस रोक कर उसकी कला देखने लगे। उसने कितने ही अनुपम कौशल दिखाये । कभी वह आकाश की ओर वाण चलाता तो कभी आखें बन्द करके शब्द वेधी वाण चलाता । कभी वह इस तीव्र गति से बाण चलाता कि दर्शक यह न समझ पाते कि कब बाण उसके हाथ में आता और कब छूट जाता उसके धनुष की आवाज इतनी तेज होती कि कायरों के हृदय भी कॉप जाते। वाणविद्या की परीक्षा के उपरान्त रथ-विद्या व विकट गाडियों की बारी आई। राजकुमार अपने अपने रथ पर सवार होकर मण्डप में आये। सभी के रथों में चचल और आकर्षक अश्व जुड़े थे। गुरुदेव की आज्ञा पाकर सभी रथ क्रमवद्ध खड़े हो गए । बाण छोड़ कर सभी ने अपने वृद्धजनों को प्रणाम किया और फिर गुरु का आदेश पाकर वे बिखर गए । युद्ध का दृश्य उपस्थित हो गया। स्वय एक दूसरे पर आघात करके अपनी रक्षा करने लगे। कौन राजकुमार, कब किधर से निकला और किधर गया, किसका बाण किसके द्वारा कब काटा गया,
SR No.010301
Book TitleShukl Jain Mahabharat 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShuklchand Maharaj
PublisherKashiram Smruti Granthmala Delhi
Publication Year1958
Total Pages617
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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