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________________ ३८४ जैन महाभारत मण्डली के बीच आज अपूव ही दीप्ति थी। ऊपर से नीचे तक धारण किये हुए श्वेत वस्त्र उनके धवल यश का विस्तार कर रहा था। द्रोणाचार्य को देखकर सभी का हृदय श्रद्धा और आदर से भर गया। राजकुमारों के चेहरे पर भी अपूर्व काति विद्यमान थी, अद्भुत तेज से उनके चेहरे प्रकाशमान थे, उन पर आश्चर्यजनक चमक विद्यमान थी। तेजस्वी ललाट और चमकते हुए नेत्र, इष्ट पुष्ट शरीर, सभी कुछ मिल कर दर्शकों को अपनी ओर आकर्षित कर रहे.थे । एक कुमार को देख कर दर्शक प्रशंसात्मक शब्दों का प्रयोग करते । जिन्हें सुन कर राज परिवार के लोग गद गद हो रहे थे । उनके नेत्र गर्व पूणे थे। ऐसे तेजस्वी कुमारों पर भला किस को गर्व न होगा। राजकुमार सब क्रम बद्ध खड़े हो गये । द्रोणाचार्य ने सावधान होने का आदेश दिवा । सब खिचकर खड़े हो गए। और गुरुदेव के श्रादेशों के अनुसार सभी शारीरिक कलाओं का प्रदर्शन करने लगे। जिसे आजकल हम 'परेड' कह कर पुकारते हैं, वैसी ही क्रियाएं द्रोणाचार्य के शिष्यों ने की। आश्चर्य जनक क्रियाओं, करतबों, और कलाओं को देखकर दर्शक बार बार करतल ध्वनि करते। जिससे द्रोणाचार्य और उनकी शिष्य मण्डली गद गद हो उठते । फिर द्रोणाचार्य ने कहा कि-.-"अब राजकुमार बाण बिद्या का प्रदर्शन करेंगे।" दर्शकों की उत्सुकता बढ़ गई । चारों ओर सन्नाटा छा गया। सर्व प्रथम राजकुमारों ने आकाश की ओर बाण चलाए । बाण इतनी फुरती से चलाए जा रहे थे, कि यह ही पता नहीं चलता था था कि किसने कब तीर चलाया। बाण कभी कभी दूसरे बाण को काट भी डालते थे । लोगों ने आकाश से भूमि पर पड़ती वर्षा बूदों को तो इतनी तीव्रता से आते देखा था, पर कभी भूमि की ओर से इस तीन गति से सैंकड़ों की सख्या में जाते तीरों को नहीं देखा था। आकाश की ओर जाते हुए तीरों का एक पर्दा सा बन जाता ।सभी देखकर आश्चर्य चकित रह गए । गुरुदेव की आज्ञा मिलने पर एक दम बाण चलाना रुक गया । उसी समय उन्होंने घोषणा की---"आपने अन्य राजकुमारों का बाण चलाना तो देख लिया और आप यह भी समझ गए होंगे कि ये वीर कुमार किस तीव्र गति से बाण चला सकते हैं, पर मैंने
SR No.010301
Book TitleShukl Jain Mahabharat 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShuklchand Maharaj
PublisherKashiram Smruti Granthmala Delhi
Publication Year1958
Total Pages617
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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