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________________ ३८६ जैन महाभारत किसने किस पर कब वाण चलाया, यह कोई देख ही नहीं सकता था। कोई यह समझ ही नहीं पाता था कि यह कृत्रिम युद्ध का दृश्य है । ऐसा प्रतीत होता था कि रण बांकुरे जी तोड़कर युद्ध मे रत हैं। सभी अपना कौशल दिखाने के लिए विद्युत गति से बाण चला रहे थे। कुछ देर के लिए बाणों की छाया उस स्थान पर हो गई जहां राजकुमार युद्ध दृश्य प्रस्तुत कर रहे थे। सभी दर्शक चकित रह गए और मुक्त । कण्ठ से उनके गुरुदेव आचार्य द्रोण की भूरि भूरि प्रशंसा करने लगे। अश्व कला प्रदर्शन रथ-विद्या के बाद सबने घुड़ दौड़ का प्रदर्शन किया । दौड़ते हुए घोड़े पर से हाथी पर जाना, हाथी पर से भागते हुए अश्व की सवारी करना, रथ पर से कूदकर हाथी पर, हाथी से अश्व पर, अश्व की लगाम मुह मे लेकर बाण चलाना, दोनों हाथों से खडग धुमाना, रथ से कूदकर हाथी को पार करते हुए भागते अश्व पर पहुंच जाना, भागते अश्व पर से कूदकर भागते रथ पर जाकर तेग चलाना, इत्यादि विचित्र विचित्र कलाए देखकर जनता राजकुमारों की प्रशंसा करने लगी। घुड़ दौड़ प्रदर्शन के पश्चात् गुरुदेव द्रोणाचार्य ने आज्ञा दी कि एक ओर युधिष्ठिर हो जाय और दूसरी ओर सब राजकुमार । सब मिलकर युधिष्ठिर को घेरें । अज्ञानुसार सब राजकुमारों ने युधिष्ठर के रथ को घेर लिया। और बाण चलाने लगे। युधिष्ठिर आत्म रक्षा करते हुए अपने रथ को घेरे से बाहर निकालने के लिए कुम्भकार के चाक से भी तेजी के साथ घुमाने लगे और समस्त प्रहारों से स्वरक्षा करते हुए सकुशल बाहर निकल आये । दर्शक उत्साह से करतल ध्वनि करने लगे। द्रोणाचार्य ने प्रशसा करते हुए युधिष्ठिर की पीठ थपथपाई और बोले--"तुम ने हमारी प्रतिष्ठा बचाली।" __ युधिष्ठिर ने विनीत स्वर में उत्तर दिया-"सब आपका ही प्रताप है।" असि परीक्षा तदुपरान्त असि परीक्षा प्रारम्भ हुई। द्रोणाचार्य ने आदेश दिया कि नकुल और सहदेव को सभी चारों ओर से घेर लें और यह दोनों कुमार अपने कौशल से घेरा तोड़कर बाहर निकलें। आदेश मिलना
SR No.010301
Book TitleShukl Jain Mahabharat 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShuklchand Maharaj
PublisherKashiram Smruti Granthmala Delhi
Publication Year1958
Total Pages617
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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