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________________ Wwwww ANNAVARANA ही सब कुछ सम्मुख वसुविख्य वस्त्र कनकवती परिणय १६७ प्रभाव पडता नहीं तो वे मन ही मन बहुत प्रसन्न हुए कि कनकवती का उनके प्रति अनुराग वस्तुतः अत्यन्त दृढ सत्य व परिपक्क है। अब ता वे कनकवतो से हार मान कर जिस प्रकार गुप्त रीति से यहां आये थे उसी प्रकार विदा हा गये । कुबेर के पास पहुच उन्होंने सारा वृतान्त अक्षरशः निवेदन करने का उपक्रम किया ही था कि उन्हे बीच ही में रोककर कुबेर ने कहा मुझे कुछ बतलाने की आवश्यकता नहीं देवताओं को तो अवधि ज्ञान होता है इसलिए वे बैठे बैठे ही सब कुछ जान लेते हैं।। - पश्चात् कुबेर ने समग्र देवताओं के सम्मुख वसुदेव के पवित्र शुद्ध एव पवित्र आचरण की प्रशसा की और उन्हें दो देवदूष्य वस्त्र तथा दिव्य आभूषण भी प्रदान किये। इन वस्त्राभूषणों को धारण करते ही वसुदेव भी साक्षात् कुबेर के समान प्रतीत होने लगे। ___यह ज्ञात होने पर कि राजकुमारी का स्वयवर देखने के लिए साक्षात् कुबेर आये हैं महाराज हरिश्चन्द्र अत्यन्त उत्साहित हुए । उन्होंने स्वयवर सभा भवन को नाना विध दिव्य उपकरणों से अलकृत व ससज्जित करवा दिया अब तो यह सभा भवन अपनी अनुपम छटा के कारण साक्षात् देवराज इन्द्र की सभा के समान अलौकिक हो उठा। सभा मण्डप में कुबेर के लिये एक ऊँचा और विशेष रूप से आकर्षक ऐसा सिहांसन बनवाया गया जिसे देख कर सब लोगों की दृष्टि सहसा उसी की ओर खिंच जाती। आखिर स्वयवर का दिन आ ही पहुँचा । धीरे-धीरे सभा मण्डप नाना देश देशान्तरों से आये हुए राजाओ, राजकुमारों तथा अन्य दर्शकों से भरने लगा, इधर महाराज हरिश्चन्द्र स्वय कुबेर को लेने के लिये उनके आवास स्थान पर जा पहुँचे। तब कुबेर अपनी बड़ी ठाठ-बाट की सवारी के साथ सभा भवन की ओर चल पडे। उनके दोनों ओर देवागनाएँ उन पर चवर ढोल रही थीं, आगे-आगे वन्दीजन स्तुति-गान करते हुए चल रहे थे, वे बडे मनोहर हस की सवारी किये हुए धीरे-धीरे आगे बढ़ रहे थे और उनके पीछे-पीछे अन्यान्य देवताओं का दल चला आ रहा था। कुबेर के सभा भवन में पहुंचते ही वह विशाल मण्डप उनकी दिव्य छटा से आलौकित हों उठा । देव और देवांगनाओं से घिरे हुए कुबेर
SR No.010301
Book TitleShukl Jain Mahabharat 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShuklchand Maharaj
PublisherKashiram Smruti Granthmala Delhi
Publication Year1958
Total Pages617
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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