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________________ फल - 9 स्नायविक दुर्बलता के कारण उत्पन्न होने वाला क्रोध और मोह का विकार नष्ट हो जाता है । २. स्नायु पुष्ट होते है । ३. मन शक्तिशाली और प्रशान्त होता है । ४. कामवासना पर विजय प्राप्त होती है । सिद्धासन विधि - बाये पैर की एड़ी को गुदा और सीवन के बीच मे रखिए और दाये पैर की एडी को इन्द्रिय के ऊपर स्थापित कीजिए। हाथो की मुद्रा पद्मासन की भांति कीजिए । समय - एक मिनट से तीन घटा । फल - वीर्य शुद्धि | भद्रासन विधि - दोनो पैरो को सामने फैलाकर बैठिए । बाद मे पैरो के तलो को सपुटित कीजिए - परस्पर मिलाइए । फिर उन्हे उपस्थ के समीप रखिए जिससे पैरो के अंगूठे भूमि पर और एडियां नाभि के समीप आ जाए। फिर पैरो को धीमे-धीमे घुमाइए जिससे पैरो की अंगुलियां नितम्बो के नीचे चली जाये और एडियां वृषण-ग्रन्थियो के नीचे सामने की ओर दीखे। दोनों हथेलियों को घुटनो पर टिकाइए । समय - पाच मिनट से आधा घंटा । फल - कार्य करने की रुचि उत्पन्न होती है 1 वज्रासन विधि - घुटनो को मोडकर पीछे की ओर ले जाइए जिससे दोनो ऊरु और जघाए ऊपर-नीचे हो जाए । घुटने से अगुलियो तक का भाग जमीन को छूते हुए रहना चाहिए । समय - दस-पन्द्रह मिनट किए बिना इसका परिणाम प्राप्त नहीं होता । विशेष लाभ के लिए इसे लम्बे समय तक करना चाहिए । फल- १. भोजन के पश्चात् पन्द्रह मिनट तक वज्रासन करने से पाचन शक्ति वढती है । ६४ / मनोनुशासनम्
SR No.010300
Book TitleManonushasanam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1998
Total Pages237
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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