SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 87
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २. अपानवायु की शुद्धि । ३. वीर्य दोष की शुद्धि । ४. घुटनो और पैसे के स्नायुओ की सशक्तता | मत्स्येन्द्रासन विधि-बाये पैर का पजा दाये ऊरु के मूल मे रखिए और एड़ी को पेडू से सटाइए। फिर दाये पैर को बाये घुटने से आगे ले जाइए! बाये हाथ को दाये घुटने के ऊपर से ले जाकर अगुलियो से उसका अगूठा पकड़िए । दाये हाथ को पीठ की ओर ले जाकर उससे बायें पैर की एड़ी पकड़िए । मुंह और पीठ के भाग को जितना मोड़ सकें, उतना पीछे की ओर ले जाइए । धीमे-धीमे श्वास लीजिए। दूसरी आवृत्ति में पैरो और हाथो का क्रम बदल दीजिए । समय - एक या दो मिनट । फल-पृष्ठ-रज्जु के स्नायुओ की शुद्धि । अर्धमत्स्येन्द्रासन जब बायें पैर की एड़ी को गुदा और सीवन के बीच रख कर दाये पैर को पूर्ववत बाये घुटने से आगे ले जाकर रखा जाता है, दाये हाथ को पीठ के पीछे ले जाकर बाये ऊरु के मूल में स्थापित किया जाता है और शेष क्रिया पूर्ववत की जाती है तब अर्धमत्स्येन्द्रासन हो जाता है । दूसरी आवृत्ति मे पैरो और हाथों का क्रम बदल देना चाहिए। अर्धमत्स्येन्द्रासन का समय और फल पूर्ववत् है । मत्स्येन्द्रासन की अपेक्षा फल की मात्रा इसमें कम होती है। पश्चिमोत्तानासन f विधि - सीधे बैठकर दोनो पैरो को आगे की ओर समरेखा में फैलाइए । फिर श्वास का रेचुन कर शरीर को आगे की ओर झुकाते हुए दोनो हाथो की अगुलियो से पैरो के अंगूठो को पकड़िए और सिर को दोनो घुटनो के वीच मे टिका दीजिए। समय - इस आसन की सिद्धि आधा घंटा तक करने से होती है। मनोनुशासनम् / ६५
SR No.010300
Book TitleManonushasanam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1998
Total Pages237
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy