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________________ रखता है, उसके कर्म-सस्कार क्षीण होते है। जो लुब्धभाव रखता है, उसके कर्म-सस्कार सचित होते है। इसलिए आने वाले लोभ का निरोध करो और जो लोभ आ गया, उसे विफल करो। २०. जो सत्य वोलता है, उसके कर्म-सस्कार क्षीण होते है। जो असत्य बोलता है, उसके कर्म-सस्कार सचित होते है। २१. हिंसा आदि अकरणीय कार्य से विरत होना सयम है। जो सयम करता है, उसके कर्म-संस्कार क्षीण होते है। जो असयम करता है, उसके कर्म-सस्कार सचित होते है। २२. सचित कर्मो का शोधन करने वाले पराक्रम को तप कहा जाता है। जो तप करता है, उसके कर्म-सस्कार क्षीण होते है, इसलिए तप का अभ्यास करो। २३. सयमी को वस्त्र, पात्र, औपध आदि का सविभाग देने को त्याग कहा जाता है। जो सविभाग करता है, उसके कर्म-सस्कार क्षीण __ होते है, इसलिए सविभाग करो। २४. अपने शरीर के प्रति जो नि सगता होती है, निर्ममत्व होता है, उसे आकिचन्य कहा जाता है। जो नि.सग होता है, उसके कर्म-सस्कार क्षीण होते है। जो आसक्त होता है, उसके कर्म-सस्कार सचित होते है, इसलिए आकिचन्य का अभ्यास करो। २५. जो ब्रह्मचर्य का भली-भाति आचरण करता है, उसके कर्म सस्कार क्षीण होते है। जो उसका सम्यग् आचरण नही करता, उसके कर्म-सस्कार सचित होते है, इसलिए ब्रह्मचर्य का आचरण करो। महाव्रत महर्षि पतजलि ने अष्टाग योग का प्रतिपादन किया है। उसमे पहला __ अग यम है। जैन साधना पद्धति का पहला अंग महाव्रत है। महाव्रतो को मूल गुण और शेप साधना के अगो को उत्तर गुण माना जाता है। महाव्रतो के होने पर अन्य साधना के अग विकसित हो सकते है। इनके न होने मनोनुशासनम् / १३५
SR No.010300
Book TitleManonushasanam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1998
Total Pages237
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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