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(७१) तम पहयर, दतिय सयल पञ्चसब विवरिय पहायर; कलि क लुलिय जग धूय-लोय लोयह अ गोयर, तिमिर निरु हर पालनाह नुवणत्तय दिशयर ॥१३॥ तुह समरण जल वरिस-सित्तमा पव मइ मेशि, प्रवरावर हुम ब-बोह कंदल दल रेहणि; जाय फल नर नरिय-हरिय उह दाह अगोवम, श्य मइ मेणि वारिवाह दिल पास मई मम ॥१४॥ कय अविकल कल्लाग-वल्लि न रिय उह वणु, दाविय सग्ग पवग्ग