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जयजंतु पियामह, अंजणय ट्रिव्य पास-नाह नाहत्तण कुरा मह ॥७॥ बहु विहु वन्नु अवन्नु-सुन्नु व निन उप्पन्निहि, मुरक धम्म का म-काम नर नियनिय सचिहि जं ज्झायदि बहु दरिस- बहु नाम पसिन, सो जोश्य मणक मल-जसल सह पास पवन ॥ जय विख्नल रण मणिर-दसण घ रहरिय सरीरय, तरलिय नयण विसुन-सुन्न गग्गर गिर करुणय; तर सहसत्ति सरंत-हुति नर नासिय गुरुदर, मह विज्झवि सज्कस