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' (३१) तमाहिं ॥ वरखिंखिणि नेनर स तिलय वलय विनुतलियाहिं ॥ रक्ष कर चनर मणोहर सुंदर दंसणि
आहि ॥ २७॥ चित्तस्करा ॥ देव सुंदरोहिं पाय वंदियाहिं वंदिया य जस्त ते सुविकमाकमा अप्पणो निमालएहिं मंमगोमणपगारएहिं केहि केहिं वि अवंग तिलय पत्तलेह नामएहिं चिल्लएहिं संगयं गयाहिं नत्ति संनिविळं बंदणागयाहि हुति ते वंदिया पुणो पुणो ॥ २७ ॥ नारायन ॥ तमहं जिराचंदं अजिचं जिअ मोहं ॥ धुय सब किलेलं,