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(६) वणुक्यार सहाव-नाव करुणा रस सत्तम, सम विसमई किं घणु-निय इनुवि दाह समंतन, श्य उदि बंधव पास-नाह मा पाल युएशंतन. ॥ ३४ ॥ नय दीगह दीपयु-मुयवि अन्नुवि किवि जुग्गय, जं जोवि नवयार-करहि नवयार समुज्जय; दीगह दीगु निहीणु-जेण तइ ना हिण चत्तल, तो जुग्गन अहमेवपास पालहि म चंगन, ॥ २५ ॥ अह अन्नुवि जुग्गय वि-सेसु किवि मन्नहि दीगड, जंपासिवि नवयारुकर तुह नाद समग्गह; सुच्चिय किल कल्लागु-जेश जिण तुम्ह प.