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________________ ( ४८ ) उद्यच्णांक शुचि-निर्भर-वारि-धार Cel मुच्चैतट मुगिरेरिव शातकौम्भम् ||३०|| छत्र-त्रय नव विभाति शशककात -- मुच्चैः स्थितं स्थगित- भानु-कर प्रताप मुक्ता फन प्रकर- जान विवृद्ध-शोभ, प्रत्यापत्त्रिजगत परमेश्वरत्व 112811 भोर तार-य-पूरित-दिग्विभाग स्त्रैलोक्य-लोक- शुभ-सगम-भूतिदक्षः । सद्धमराज जय घोषण-घोषकः सन्, से दुन्दुभिध्वनति ते यास प्रवादी ||३२|| मदार- सुन्दर - नमेरु- मुपारिजात -- सतानकादि - कुमुमोत्कर-वृष्टिरुद्धा | गंधोद - विदु- शुभ -मद- मरुत्प्रपाता, दिव्यादिवः पतिते वचसा ततिर्वा ॥ ३३॥ शुम्भत्प्रभा- वलयभूरि-विभा विभोस्ते, लोक-त्रयैतिमता द्युतिमाक्षिपति । प्रोद्यद्दिवाकर - निरतर - भूरि- सख्या, दीप्त्या जयत्यपि निशामपि सोम-सौम्या म् । ३४ ।। स्वर्गापवर्ग-गम-मार्ग-विभागंष्टः, सद्धर्म-तत्व-कथनेक-पट स्त्रिलोक्या. । दिव्य-ध्वनिर्भवति ते विशदार्थ-सर्व भाषा - स्वभाव - परिरणाम - गुणैः प्रयोज्यः || ३५॥
SR No.010298
Book TitleJain Stotra Puja Path Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVeer Pustak Bhandar Jaipur
PublisherVeer Pustak Bhandar Jaipur
Publication Year
Total Pages443
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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