SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 269
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ बुद्धया विनापि विबुधाचित-पाद-पीठ ! स्तोतुं समुद्यत-मतिविगत-त्रपोऽहं । बाल विहाय जल-सस्थितमिन्दु-बिम्ब---- ___ मन्यः क इच्छति जनः सहसा गृहीतुम् ॥३॥ वक्तु गुणान् गुरण-ससुर ! शशांक-कान्तान्, फरसे क्षमः सुरु-गुरु-प्रतिमोऽपि बुद्धया । कल्पांत-काल-पवलोद्धत-नक-चक्र, को वा तरीतुमलमल्बुनिषि भुजाभ्यास ॥४॥ सोऽह तथापि तव भक्ति-वशान्मुनीश ! क स्तक विगत-शक्तिरपि प्रवृत्तः । प्रोत्यात्म-पोर्षमबिचार्य मृगी मृगेन्द्रस, माभ्येति कि. निज-शिशोर परिपालनार्थम् ॥२॥ अल्प-श्रुत श्रुतवत परिहास-घाम, स्वद्भक्तिरेव मुखरीकुरुते बलान्माम् । यस्कोपिला किल मषो मधुरं विरोति, ___ लच्चान-चारु-कलिका-निकरैफ-हेतुः ॥६॥ स्वत्संस्तवेन भव-सन्तति-सनिबद्ध', पापं क्षणाक्षयमुपैति शरीरभाजाम् । पाक्रांत-लोकमलि-नीलमशेषमाशु, सूर्या शु-भिन्नमिव शाबरमधकारम् ॥७॥ मत्त्वति नाथ तव संस्तवनं मयेद मारभ्यते तनु-धियापि तव प्रभावात् ।।
SR No.010298
Book TitleJain Stotra Puja Path Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVeer Pustak Bhandar Jaipur
PublisherVeer Pustak Bhandar Jaipur
Publication Year
Total Pages443
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy