SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 252
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( २२ ) समिति पंच परकार | घार निलंग नार । १० लोक पुष मंठान | भरत है दिन ज्ञान । ११ । fear चित्ता रेन । सुख देन १२ यांचे मुग्नर देय दिन दिन चितवे, धर्म न धनकन कवन राजमुद्र सर्व सुनकर ज्ञान । दुर्लभ है मंमार में, एक व्यास्य ज्ञान १३॥ प्रातकालीन स्तुति बीनराग नवंन हितङ्कर, नविजन को अब पूरो छा ज्ञान-भानु का उदर करो मम मियानन का होय दिनाम । नीत्रों की हन करुणा पाले, कूठ वचन नहि कहें का पर धन कहूं न हहिं स्वामी ब्रह्मचर्य व्रत रहे नवा ॥ तृष्णा लोभ बढेन हमारा, तोष-मुधा नित पिया करें। श्री जिनधर्म हमारा प्यारा, उनकी मेवा किया करें ॥ पञ्चमहावन मञ्च प्रवन मंत्री विजय, चौदह राजू उन त तामें लीव अनादि में, दूर नगावें बुरी रीतियाँ सुखद रोति का करें प्रचार 1 मैच मिलाप बढाएँ म नव धर्मोप्रति का करें विचार ॥ मुत्र ब्रुख में हम ममता घारें रहे अचल तिमि साल 1 न्याय मार्ग को देश न स् वृद्धि करें निज प्रातम बल । प्रष्ट कर्म जो कुछ देने हैं, तिनके क्षय का करें उपाय ! नाम प्रापका जपे निरन्तर रोग शोक नव ही डर जाय । प्रतिम शुद्ध हमारा होवे पाप मैन नहि चडे कदा | विद्या की हो उनि हम में धर्म ज्ञान हू बड़े ना |
SR No.010298
Book TitleJain Stotra Puja Path Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVeer Pustak Bhandar Jaipur
PublisherVeer Pustak Bhandar Jaipur
Publication Year
Total Pages443
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy