SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 253
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (२३) हाथ जोड़ कर शीश नमा, तुमको भविजन खड़े खड़े । वह सब पूरो प्ररश हमारी, चरण शरण मे पान पडे ।। सायंकालीन स्तुति है सर्वज्ञ वीर जिनदेवा. चरण शरण हम पाते हैं । जान अनन्त गुणाकर तुमको, घरणन शीश नवाते हैं ॥१॥ कथन तुम्हारा सबको प्यारा, कहीं पिरोष नही पाता । अनुभव बोष प्राषिक जिनके है,उन पुरुषों के मन भाता ॥२॥ दर्शन ज्ञान चरित्र स्वरूपो, मारग तुमने दिखलाया । यही मार्ग हितकारी समफा, पूर्व ऋषीगणे ने गाया ॥३॥ रत्नत्रय को भूल न जावै, इसीलिए उपनयन करें । वह्मचर्य को दृढ़तम पाल, सप्तन्यसन का त्याग करै ।।४।। नीतिमार्ग पर निस्य चलें हम, योग्याहार विहार करे। पालें योग्याचार सदा हम, वर्णाचार विचार करै ॥५॥ धर्ममार्ग अए वैधमार्ग से, देशोद्धार विचार करें। पार्षवचन हम दृढ़तम पाले, सस्सिद्धान्त प्रचार करे ॥६॥ श्रीजिनधर्म बढ़े दिन दूनो, पच प्राप्तनुति नित्य करें। सत्संगति को पाकर स्वामिन, फर्म कलक समूल हरे ॥७॥ फलें भाव ये सभी हमारे, यही निवेदन करते है। 'लाल' बाल मिल भाल वीरके चरणो मे शिर परले है ॥८॥ __ भावना भजन भावना दिन रात मेरी सब सुखी संसार हो। सत्य सयम शील का व्यवहार घर घर बार हो ॥टेका।
SR No.010298
Book TitleJain Stotra Puja Path Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVeer Pustak Bhandar Jaipur
PublisherVeer Pustak Bhandar Jaipur
Publication Year
Total Pages443
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy