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________________ zo : dierenfra or L Âì q¤ श्रीमा 1:नगरपा नागमन में - IT, --îgirių f** वरं भावाम गोलया। इन । उपतल किसान रिन गया है। वह आशिया 1 गुरु ९२ गुणः । श्रीपाहता गाजर गमस्थान के ठिकान Wiki HÀ17 Lu husait que facto qu ngida ungua, munozą kamqqını, quamazını, ifsfirangua, aprub trangAT, TAMAŞA, data em qut alrittfangmai písðendur að al comma on dit mm q'àTỪ 3 5 7 CHI TIÊU THI THIÊN vim fria ưngàquà frammi fig til नहीं है। विवर्गाने फल ही है। ह ४. पारकर मान नाली जोधा हिंगा जाता है ओर प कथन तो à se mů -ITAT, शोभनापी विभागके भूत, वर्तमान र भविष्य मीनाक्षेत्र मान लिया जाता है। मिध्यादृष्टि है। गोमयादृष्टि और जीवांका होने है और और मगमन से है। वर्तमान अतीतकाल भी उन्होंने किया है । ऐसी बात नहीं है। जन्य व गुम्बा राजीयों के ना रहो है । एक दी अपवादीमध्यमं एक राजु को घो क्षण भी गर्व है और किन्तु अन्य गुणग्यानबा हो हो गाते है | और को छोड़कर गगनाओंके बाहर नहीं रहते । ओर चौदह राजु ऊँची गना है। जो जी उनके जितने को करता है उसका उतना ही स्पर्शन क्षण माना गया है। जैसे बिहारवल्वग्थान और विक्रियारा मुद्धातकी अपेक्षा गागादनसम्यग्दृष्टि जोनो स्पर्शन प्रसनाके नोदह भागोमेरो आठ भाग बालाया है । यह आठ भाग घन राजु प्रमाण क्षेत्र तीसरी बालुका पृथिवीसे लेकर गोलहवे स्वर्ग तक लेना चाहिये। क्योकि भवननागी देव नीचे तीसरी पृथि तक और ऊपर यदि ऊपरके देव ले जायें तो सोलहवे स्वर्ग तक विहार कर सकते है | इस क्षं का प्रमाग रानाडीके चौदह भागोगे आठ भाग
SR No.010294
Book TitleJain Sahitya ka Itihas 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKailashchandra Shastri
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year
Total Pages509
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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