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________________ २१८ . जैनसाहित्यका इतिहास शका-यदि ऐसा है तो उक्त दोनो ही कयनोको द्वादशागका अवयव होनेसे सूत्रपना प्राप्त होता है ? समाधान-उन दोनोमेंसे कोई एकको सूत्रपना भले ही प्राप्त हो, किन्तु दोनोको सूत्रपना नहीं प्राप्त हो सकता, क्योकि उन दोनोम परस्पर विरोध पाया जाता है। __शका-तव सूत्रविरुद्ध लिखनेवाले आचार्यको पापभीरु कैसे कहा जा सकता है ? समाधान-यह आपत्ति ठीक नहीं है, क्योकि उक्त दोनो कथनोमेंसे किसी एक ही कथनका सग्रह करनेपर पापभीस्ता नहीं रहती। किन्तु उक्त दोनो कथनोका सग्रह करने वाले आचार्योके पापभीरूता नष्ट नही होती। शका-उक्त दोनो वचनोमेंसे कोन वचन सत्य है ? समाधान-इस वातको तो केवली अथवा श्रुतकेवली ही जान सकते है, दूसरा कोई नही जान सकता । अत उसका निर्णय न होनेसे वर्तमान कालके पाप भीरू आचार्योको दोनो ही वचनोका सग्रह करना चाहिये, अन्यथा पापभीरताका विनाश हो जायगा। ___इस प्रकारके पापभीरू आचार्यके कथनमें अप्रामाणिकताकी अशका नही की जा सकती। व्याख्यान शैली षट्खण्डागमके सूत्र अल्पाक्षर होने पर भी असन्दिग्व है-पढते ही शब्दार्थका बोध हो जाता है । किन्तु उनमें जो सार भरा हुआ है उसका तो आभास भी साधारण पाठकको नही हो पाता । अत. वीरसेनाचार्यने अपनी धवला टीकाके द्वारा सूत्रोके शब्दार्थको न कहकर उनमें भरे हुए सारको ही प्रकट किया है। किन्तु वह सार-उद्घाटन भी ऐसा है कि उससे सूत्रगत प्रत्येक शब्दकी स्थिति स्वत स्पष्ट हो जाती है और यदि क्वचित् कदाचित् किसी सूत्रमें कोई शब्द भूलसे छूट गया हो तो विचारशील पाठकको यह प्रतिभास हुए बिना नही रहता कि अमुक शब्द यहाँ छूट गया है। इसका एक उदाहरण दे देना उचित होगा। धवलासहित षट्खण्डागमकी जो प्रतिलिपि मूडविद्रोसे बाहर गई उसमें जीवट्ठाणके सतप्ररूपणा अनुयोगद्वारके ९३ वें सूत्रमे 'सजद' शब्द लिखनेसे छूट गया। किन्तु वीरसेन स्वामीकी टीकाके अनुशीलनसे वह बराबर प्रकट होता है कि सूत्रमें 'सजद' शब्द छूटा हुआ है। बादको जब मूडविद्री
SR No.010294
Book TitleJain Sahitya ka Itihas 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKailashchandra Shastri
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year
Total Pages509
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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