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________________ चूर्णिसूत्र साहित्य १९३ 'पाहुडका निक्षेप करना चाहिये । नामपाहुड, स्थापनापाहुड, द्रव्यपाहुड और भावपाहुड इसप्रकार पाहुडके विषयमें चार निक्षेप होते है । इनमें से सवका स्वरूप न बतलाकर आचार्य यतिवृषभने नोआगमतद्वयतिरिक्तनिक्षेपका स्वरूप बतलाते हुए लिखा है तद्वयतिरिक्तनोआगमद्रव्यनिक्षेपकी अपेक्षा पाहुडके तीन भेद है-सचित्त, अचित्त और मिश्र । यहाँ पाहुड (प्रामृत ) का अर्थ भेंट है । भेटमें दिये गये हाथी घोडा आदि सचित्त पाहुड है। मणि, मुक्ता आदि' अचित्त पाहुड है और रत्नालकार भूषित स्त्री मिश्र पाहुड है। 'नोआगम भावपाहुडके दो भेद है-प्रशस्त और अप्रशस्त । दोगथिय पाहुड प्रशस्त नोआगम भावपाहुड है। और कलहपाहुड अप्रशस्त नोमागम भावपाहुड है। इनकी व्याख्या करते हुए जयधवलाकारने लिखा है कि परमानन्द और आनन्द सामान्यकी सज्ञा 'दोगथिय' है। जो वस्तु परमानन्द या आनन्दका कारण होती है उपचारसे उसे भी 'दोगथिय' कहते है। केवल आनन्द तो किसीको उपहारमें नहीं दिया जा सकता, अत आनन्द या परमानन्दका निमित्त कोई द्रव्य भेंट देना दोगधियपाहुड कहा जाता है । अत दोगथियपाहुडके दो भेद है-परमानन्दपाहुड और आनन्दमात्रपाहुड । केवलज्ञान और केवलदर्शनरूप लोचनोसे समस्त लोकको प्रकाशित करनेवाले वीतराग जिनेन्द्रदेवने निर्दोष श्रेष्ठ विद्वान् आचार्योंकी परम्परासे भक्तजनोके लिये भेजा गया जो बारह अगरूप वाणी या उसका एक देश परमानन्द दोग्रन्थिक पाहुड है । इस ग्रन्थमें पाहुडसे परमानन्द दो गधिय पाहुड ही इष्ट है । इसके पश्चात् यतिवृपभने 'पाहुड' शब्दकी निरुक्ति की है-'पदेहिं पुद (फुडं ) पाहुड' । पदोसे जो स्फुट अर्थात् व्यक्त हो उसे 'पाहुड' कहते है । १ 'पाहुड णिक्खियछ । णामपाहुड टठ्वणपाहुड दवपाहुड भावपाहुट चेदि एव चत्तारि णिक्खेवा सत्य होति । वही , पृ० ३०० । २ 'नोआगमदो भावपाहुड दुविह पसत्यमप्पसत्य च' वही, पृ० ३२३ । ३ पसत्य जहा दोगधियं पाहुड। अमत्र्य जहा कलहपाहुड ।' वही, पृ० ३२४,३२५ । १ 'पाहुडेत्ति का निरुत्ती जम्हा पदेहि पुद (फुड) तम्हा पाहुट ' वही, पृ. ३०६ ।
SR No.010294
Book TitleJain Sahitya ka Itihas 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKailashchandra Shastri
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year
Total Pages509
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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