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________________ १९२ : जैनसाहित्यका इतिहास पर खोदे गये, वस्त्रपर छापे गये, भित्तिपर चित्रित किये गये और पत्थर पर खोदे गये क्रोधी, मानी, मायावी और लोभीकी आकृतियाँ आदेशकषायकी अपेक्षा क्रोध, मान, माया और लोभ कहे जाते है। ये दोनो समुत्पत्तिकषाय और आदेशकषाय नैगमनयके विषय है। अन्य नयोके नही। जिस द्रव्य या जिन द्रव्योका रस कसला है उस या उन द्रव्योको रसकषाय कहते है । और कषायसे रहित द्रव्यको नोकषाय कहते है। भावनिक्षेपके दो भेद है-आगमभावनिक्षेप और नोमागमभावनिक्षेप । नोआगमभावनिक्षेपकी अपेक्षा क्रोधका वेदन करनेवाला जीव क्रोधकषाय है। इसीप्रकार मान, माया और लोभको भी जानना चाहिये । इस तरह आचार्य यतिवृषभने 'कसायप्राभृत' नामके कपायशब्दका निक्षेपोके द्वारा कथन करके यह बतलाया कि कषायशब्दका व्यवहार कितने रूपोमैं किसकिस प्रकारसे होता है। और उनमेंसे यहाँ केवल भावकषाय ही विवक्षित है, शेप कषाय नहीं। आगे इस भावकषायका विशेष कथन करनेके लिये आचार्य यतिवृपभने छ अनुयोगद्वारोका कथन किया है १. कपाय क्या है ? २ कषाय किसके होती है ? ३ कपाय किस साधनसे होती है ? ४ कपाय किसमें होती है ? ५ कपाय कितने काल तक होती है ? और ६ कषायके कितने प्रकार है ? इन छै अनुयोगोका नाम क्रमश २ निर्देश, स्वामित्व, साधन, अधिकरण, स्थिति और विधान है। इनके द्वारा कथन करनेसे कपायके विपयकी पूरी जानकारी या कथनी हो जाती है, इसीसे जैन आगामिक परम्परामें सभी पदार्थोका विवेचन इन छै अनुयोगोके द्वारा करनेका विधान है। अस्तु, कपायका निक्षेपविधिसे कथन करनेके पश्चात् यतिवृपभने 'पाहुड' का कथन किया है - - १ वही, पृ०३०४। २ निर्देश-स्वामित्व-माधन-अधिकरण-स्थिति विधानत. न० सू० -१-६ । ३. 'कि केण कस्स कत्थ वि केवचिर कदिविधी य भावो य । छहिं अणिोगदारे सव्वे भावाणुगतव्वा ।।" मूलाचा० ८.१५ । 'दुविहा परूवणा छप्पया य नवहा य छप्पया दणमो। कि कम्म केण व कर्हि केवचिर कइविधे य भवे १८९१॥ आव०नि०
SR No.010294
Book TitleJain Sahitya ka Itihas 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKailashchandra Shastri
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year
Total Pages509
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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