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________________ छक्खंडागम १३५ का, शिविकाओका, गुहोका, प्रासादोका, गोपुरोका और तोरणोका काष्ठसे, लोहसे, रस्सीरो, चमडेकी रस्सीसे, और दर्भसे जो बन्ध होता है वह आलापनवन्ध है ॥४१॥ कटकोका ( चटाईका ), कुड्योका, गोवरपिण्डोका, प्राकारोका और शाटिकाओका, तथा इस प्रकारके अन्य द्रव्योका जो बन्ध होता है वह अल्लीवणबन्ध है ॥४२॥ लकडी और लाखके वन्धको सश्लेषवन्ध कहते है ॥४३।। औदारिक आदि शरीरोके वन्धको शरीरवन्ध कहते है। जीवके माठ मध्य प्रदेशोका जो परस्पर में प्रदेशवन्ध है वह अनादि शरीरबन्ध है। कर्मवन्धको कर्मानुयोगद्वारकी तरह जानना चाहिये ॥६४॥ इस वन्धनअनुयोगद्वारमे ६४ सूत्र है । २ वन्धकअनियोगद्वार ___ वन्धकअनुयोगको खुद्दावन्ध नामक दूसरे खण्डकी तरह जान लेना चाहिये । खुद्दाबन्धमें इसका कथन हो चुका है। ३ बन्धनीयअनुयोगद्वार जो बन्धके योग्य होता है उसे वन्धनीय कहते है । पुद्गल बन्धनीय है क्योकि पुद्गलोके सिवाय अन्य कोई पदार्थ बन्धनीय नही है । वे वन्धनीय पुद्गल स्कन्धस्वरूप होते है । और वे स्कन्ध वर्गणारूप होते है । अत वन्धनीयका कथन करते हुए वर्गणाका कथन अवश्य करना चाहिये । वर्गणाओके सम्बन्धमें आठ अनुयोगद्वार जानने योग्य है-वर्गणा, वर्गणाद्रव्यसमुदाहार, अनन्तरोपनिधा, परम्परोपनिधा, अवहार, यवमध्य, पदमीमासा और अल्पबहुत्व ॥६९॥ वर्गणा-वर्गणाअनुयोगद्वारके विषयमें ये सोलह अनुयोगद्वार है-वर्गणानिक्षेप, वर्गणानयविभापणता, वर्गणाप्ररूपणा, वर्गणानिरूपणा, वर्गणाध्रुवाध्रुवानुगम, वर्गणासान्तरनिरन्तरानुगम, वर्गणाओजयुग्मानुगम, वर्गणास्पर्शनानुगम, वर्गणाअन्तरानुगम, वर्गणाभावानुगम, वर्गणाउपनयनानुगम, वर्गणापरिमाणानुगम, वर्गणाभागाभागानुगम और वर्गणाअल्पबहुत्व ॥७०॥ वर्गणानिक्षेप छै प्रकारका है-नामवर्गणा, स्थापनावर्गणा, द्रव्यवर्गणा, क्षेत्रवर्गणा, कालवर्गणा, और भाववर्गणा ॥७१॥ नैगम, सग्रह और व्यवहार सब वर्गणाओको स्वीकार करते है। ऋजुसूत्र स्थापनावर्गणाको स्वीकार नहीं करता। शब्दनय नामवर्गणा और भाववर्गणाको स्वीकार करता है। इस तरह सूत्रकारने वर्गणाके सोलह अनुयोगद्वारोमेंसे आदिके दो ही अनुयोगद्वारोका कथन किया है ।
SR No.010294
Book TitleJain Sahitya ka Itihas 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKailashchandra Shastri
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year
Total Pages509
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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