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________________ ४१४ जैनसाहित्य और इतिहास वे विक्रमकी ग्यारहवीं सदीके अन्त और बारहवीं सदीके प्रारंभके विद्वान् हैं । अपना महापुराण उन्होंने ज्येष्ठ सुदी ५, श० सं० ९६९ (वि० सं० ११०४) को समाप्त किया था। अपने अन्य किसी ग्रन्थमें उन्होंने रचनाका समय नहीं दिया, इसलिए यह नहीं बतलाया जा सकता कि यह उनका प्रारंभिक ग्रन्थ है या पीछेका और न यही बतलाया जा सकता है कि कबसे कब तक वे इस धराधामपर रहे। मुलगुन्द धारवाड़ जिलेकी गदग तहसीलमें गदगसे १२ मील दक्षिण पश्चिमकी ओर है । यहींके एक जैनधर्मालय (जैनमन्दिर ) में रहते हुए उन्होंने महापुराण रचा था । इस स्थानका उन्होंने तीर्थरूपमें उल्लेख किया है । उस समय यह तीर्थरूपमें प्रसिद्ध था। इस समय भी वहाँ चार जैनमन्दिर हैं। इन मन्दिरोंमें शक संवत् ८२४, ८२५, ९०२, ९७५, १०५३, ११९७, १२७५, और १५९७ के शिलालेख है । एक लेखमें आसार्यद्वारा सेनवंशके कनकसेन मुनिको एक खतके दान देनेका भी उल्लेख है । एक मन्दिरके पीछेकी पहाड़ी चट्टानपर २५ फीट ऊँची जैनमूर्ति उत्कीर्ण की हुई है। संभव है, मल्लिपेणका मठ भी इसी स्थानमें रहा हो। वे उभयभाषाके अर्थात् संस्कृत प्राकृतके कवि थे; परन्तु अभी तक उनके जितने ग्रन्थ उपलब्ध हुए हैं वे सब संस्कृतके हैं, प्राकृतका एक भी नहीं है । प्राकृतसे यदि उनका अभिप्राय उनके देशकी भाषा कनड़ीसे हो, तो कनड़ीमें भी अभी तक उनका काई मन्थ नहीं मिला है। अब तक उनके नीचे लिखे ग्रन्थ उपलब्ध हुए हैं १ महापुराण-यह दो हजार श्लोकोंका संस्कृत ग्रन्थ है, जिसमें ६३ शलाका पुरुषोंकी संक्षिप्त कथा है । रचना सुन्दर और प्रसादगुणयुक्त है । कोल्हापुरके लक्ष्मीसेन भट्टारकके मठमें इसकी एक प्रति कनड़ी लिपिमें लिखी हुई है। । २ नागकुमार काव्य-छोटा-सा पाँच सर्गोका खण्डकाव्य है जो ५०७ श्लोकोंमें पूर्ण हुआ है । इसके प्रारम्भमें कहा है कि जयदेवादि कवियोंने जो गद्य १ देखो, ब्र० श्री शीतलप्रसादजीद्वारा लिखित बम्बई प्रान्तके प्राचीन जैन स्मारक, पृ० १२० । ब्र. जीके ये स्मारक ग्रन्थ इतनी असावधानीसे मुद्रित हुए हैं और इतने अशुद्ध हैं कि उनके सन् संवतों के अंकोंपर और नामोंपर पूरा विश्वास नहीं किया जा सकता।
SR No.010293
Book TitleJain Sahitya aur Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1942
Total Pages650
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size62 MB
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