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________________ मल्लिोणसूरि ४१५ पद्यमय कथा लिखी है वह मन्दबुद्धियों के लिए विषम हैं । मैं मल्लिषेण विद्वजनोंके मनको हरण करनवाली उसी कथाको प्रसिद्ध संस्कृत वाक्योंमें पद्यवद्ध रचता हूँ।' वास्तवमें यह काव्य बहुत सरल और सुन्दर है। जयदेव कविका कोई नागकुमार काव्य अभीतक उपलब्ध नहीं हुआ। ३-- भैरव-पद्मावती कल्प- इसमें ४०० अनुष्टुप श्लोक हैं और १ मन्त्रिलक्षण, २ सकलीकरण, ३ देव्यर्चन, ४ द्वादशरंजिकामंत्रीद्धार, ५ क्रोधादिस्तंभन, ६ अङ्गनाकर्षण, ७ वशीकरणयन्त्र, ८ निमित्त, ९ वशीकरणतंत्र और १० गारुडतंत्र नामके दश अधिकार हैं । मंत्रशास्त्रका यह प्रसिद्ध ग्रन्थ है और बन्धुषेणके संस्कृत-विवरण के सहित प्रकाशित हा चुका है। बम्बईके सरस्वतीभवनमें इसकी दो हस्तलिखित सटीक प्रतियाँ हैं । ४ सरस्वती-मंत्र-कल्प-यह भी मंत्र-ग्रन्थ है इसमें ७५ पद्य और कुछ गद्य-विधि दी हुई है । यह भी उक्त भैरवपद्मावती कल्पके साथ प्रकाशित हो चुका है। ५ ज्वॉलिनी कल्प-इस मंत्र ग्रन्थकी एक प्रति स्व० से० माणिकचन्दजीके १ कविभिर्जयदेवाद्यैर्गद्यःपद्यैर्विनिर्मितम् । यत्तदेवास्ति चदत्र विषमं मन्दमेधसाम् ॥ प्रसिद्धसंस्कृतवाक्यैर्विदुजनमनोहरम् । तन्मया पद्यबन्धेन मल्लिषेणेन रच्यते ॥ २ इसकी एक हस्तलिखित प्रति मेरे पुस्तक-संग्रहमें है, जिसमें प्रशस्ति नहीं है। ३ बन्धुषेणने अपना कोई परिचय नहीं दिया है परन्तु घे भी कर्नाटक प्रान्तके ही जान पड़ते हैं । ९ वें परिच्छेद के ३५ वे श्लोककी टीकामें वे 'खरकणी' शब्दका अर्थ करते हुए लिखते हैं-“गर्दभकणी कर्णाटभाषया कार्येगिरी।" ४ इसे अहमदाबादके श्री साराभाई मणिलाल नवाबने सरस्वतीकल्प और दूसरे अनेक परिशिष्टों के साथ गुजराती अनुवादसहित प्रकाशित किया है। __ ५ मालामालिनी कल्प' नामका एक और मंत्रशास्त्र बम्बईके ए० पन्नालाल सरस्वतीभवनमें है जिसके कर्ता द्राविडसंघी इन्द्रनन्दि योगीन्द्र हैं जो वर्षनन्दिके शिष्य और वासवनन्दिके प्रशिष्य थे। वासवनन्दिके गुरुका भी नाम इन्द्रनन्दि था। यह ग्रन्थ श० सं०
SR No.010293
Book TitleJain Sahitya aur Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1942
Total Pages650
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size62 MB
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