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________________ मल्लिषेणमूरि आचार्य मलिषेण वादिराजसूरिके ही समसामयिक हैं । उभयभाषाकविचक्रवर्ती, कविशेखर और गारुडमंत्रवादवदी आदि उनकी पदवियाँ हैं । सकलागमवेदी, लक्षण (व्याकरण)वेदी और तर्कवेदी भी वे अपनेको लिखते हैं । वे उच्च श्रेणीके कवि थे । कहा गया है कि उनके सामने संस्कृत प्राकृतका कोई कवि अपनी कविताका अभिमान न कर सकता था । यों तो वे विविध विषयों के पंडित थे; परन्तु दिगम्बर सम्प्रदायमें उनकी ख्याति मंत्रवादीके रूपमें ही विशेष है। वे उन अजितसेनाचार्यकी शिष्यपरम्परामें हुए हैं जो गंगनरेश राचमल्ल और उनके मंत्री तथा सेनापति चामुण्डरायके गुरु थे और जिन्हें नेमिचन्द्र सिद्धान्तचक्रवर्तीने ' भुवनगुरु' कहा है । अजितसेनके शिष्य कनकसेन, कनकसेनके जिनसेन और जिनसेनके शिष्य मल्लिपेण । जिनसेनके अनुज या सतीर्थ नरेन्द्रसेनका भी मल्लियेणने गुरुरूपसे स्मरण किया है । ___ वादिराजसूरिने भी अपने न्यायविनिश्चयविवरणकी प्रशस्तिमें कनकसेन और नरेन्द्रसेनका स्मरण किया है । वादिराज चूँकि मलिषेणके ही समकालीन हैं, इसलिए उनके द्वारा स्मृत कनकसेन और नरेन्द्रसेन यही जान पड़ते हैं । वादिराजके समान मल्लिषेण भी मठपति ही होंगे । उनके मंत्र-तंत्रविषयक ग्रन्थोंसे जिनमें स्तंभन, मारण, मोहन, वशीकरण, अंगनाकर्षण, और दूसरे तरह तरहके प्रयोग हैं यही जान पड़ता है कि वे अपने गृहस्थ शिष्योंके कल्याणके लिए मंत्र तंत्र और रोगोपचारकी प्रवृत्ति भी करते होंगे । कमसे कम परमविरक्त वनवासी मुनि तो वे नहीं थे। १ भाषाद्वयकवितायां कवयो दर्प वहन्ति तावदिह । नालोकयन्ति यावत्कविशेखरमल्लिषेणमुनिम् ॥ -भै० ५० क० २ देखो न्या० वि० प्रशस्तिका दूसरा पद्य जो पहले पृष्ठ, ४०६ में दिया जा चुका है।
SR No.010293
Book TitleJain Sahitya aur Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1942
Total Pages650
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size62 MB
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