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________________ २१४ जैनसाहित्य और इतिहास वे उद्धृत करते हैं उनमें दशार्ण पर्वतके समीप बतलाया है। दशार्ण मालवेका ही एक भाग था जिसमेंसे दशार्ण या धसान नदी बहती है और जिसकी राजधानी विदिशा या भिलसा थी। कालिदासने मेघदूतमें मेघको उत्तरकी ओर जानेका मार्ग बतलाते हुए कहा है कि नर्मदा और विन्ध्यके उस ओर दशार्ण देश मिलेगा जिसकी राजधानी वेत्रवती (बेतवा) के किनारे विदिशा है। अभी तक दशार्ण देश और दशार्ण नदीके उल्लेख बहुत मिले हैं परन्तु दशार्ण पर्वतका नहीं मिला । सम्भव है, दशार्ण नदी जिस पर्वतसे निकलती है उसीका नाम दशार्ण पर्वत हो। निर्वाण-काण्डमें कोटि-शिला कलिंग देशमें बतलाई है । कलिंग और मगधका सामंजस्य इस तरहसे हो सकता है कि उस समय (अशोकके बाद) कलिंग मगधके अधिकारमें होनेके कारण मगधमें ही गिना जाता होगा। ___ महानदी, गोदावरी और पूर्वीघाट तथा समुद्र के बीचके प्रदेशका नाम कलिंग था । यह उड़ीसाके दक्षिणमें था। बौद्धोंके 'चूल-दुक्खक्खन्ध सुत्त' में राजगृहके समीप ऋषिगिरिकी काल-शिलाका वर्णन आता है जहाँ बहुतसे निर्ग्रन्थ साधु तपस्याकी तीव्र कटु-वेदना सहन कर रहे थे । सम्भव है, तीव्र वेदनाके कारण बौद्धोंने कोटि-शिलाको ही काल-शिला कह दिया हो और यदि यह ठीक हो तो जिनप्रभसूरिका मगधमें कोटि-शिला तीर्थका बतलाना ठीक हो सकता है। ब्रह्मचारी शीतल प्रसादजी गंजाम जिलेके मालती पर्वतको कोटिशिला बतलाते हैं, परन्तु इसके लिए कोई विशेष आधार उनके पास नहीं है । गंजाम (मद्रास) कलिंगमें नहीं माना जा सकता। यह आश्चर्य है कि दिगम्बर और श्वेताम्बर दोनों ही सम्प्रदायोंद्वारा इस समय किसी भी स्थानमें यह सिद्धक्षेत्र नहीं माना जाता और बिल्कुल ही भुला दिया गया है। रोसिन्दी-गिरि पासस्स समवसरणे सहिया वरदत्त मुणिवरा पंच । रिस्सिदे गिरिसिहरे णिव्वाण गया णमो तेसिं ॥ १ देखो 'बुद्धचर्या' पृ० २३० । २ 'मद्रास व मैसूर प्रान्तके प्राचीन जैन-स्मारक ' पृष्ठ १०-१३ ।
SR No.010293
Book TitleJain Sahitya aur Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1942
Total Pages650
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size62 MB
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