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________________ हमारे तीर्थक्षेत्र २१३ कोटि-शिला जसहररायस्स सुआ पंचसयाई कलिंगदेसम्मि । कोडिसिलाए कोडिमुणी णिवाण गया णमो तेसि॥ अर्थात् यशोधर राजाके पाँच सौ पुत्र और दूसरे एक करोड़ मुनि कोटिशिलापरसे मुक्त हुए । यह कोटि शिला तीर्थ कलिंग देशमें है । परंतु जिनप्रभसूरिने अपने विविधतीर्थकल्पमें उसे मगध देशमें बतलाया है और पूर्वाचार्योंकी कुछ गाथायें भी उद्धृत की है जिनमेंसे एकमें कहा है कि एक योजन विस्तारवाली कोटिशिला है और वह दशार्ण पर्वतके समीप है । वहाँ छह तीर्थकरोंके तीर्थों में अनेक करोड़ मुनि सिद्ध हुए हैं । एक और उद्धृत गाथामें कहा है कि उक्त शिलाको वासुदेव (कृष्ण) ने किसी तरह जानु तक उठाई । इसके पहलेके नारायणोंने उसे छत्रके समान बिल्कुल ऊपर तक, सिर तक, छाती तक, गर्दन तक, हृदय तक, कटि तक, ऊरु तक और जानु तक उठाई थी। __ हरिवंशपुराणके ५३ वें सर्गमें भी कोटि-शिलाके उठानेका वर्णन है और उसक विस्तार एक योजन लम्बा और एक योजन चौड़ा बतलाया है। पहले त्रिपृष्ट नारायणने बाँहोंसे उठाकर ऊपर फेंक दी थी, द्विपृष्ठने मूर्द्धा तक, स्वयंभुवने कण्ठ तक, पुरुषोत्तमने छाती तक, पुरुषसिंहने हृदय तक, पुण्डरीकने कटि तक, दत्तकने जंघा तक, लक्ष्मणने घुटनों तक और अब अन्तिम नारायण कृष्णने चार अंगुल उठाई । पद्मपुराणके अड़तालीसवें पर्वमें भी कोटि-शिलाका और उसका लक्ष्मणद्वारा उठाये जानेका वर्णन है। परन्तु इन दोनों ही ग्रन्थों में वह कहाँ थी इसका कोई स्पष्ट निर्देश नहीं है । तीर्थकल्पके कर्ता उसे मगधमें बतलाते हैं परन्तु पूर्वाचार्योंकी जिन गाथाओंको १--इह भरतखित्तमज्झे तित्थं मगहासु अत्थि कोडिसिला । अज वि जे पूइजइ चारण-सुर-असुर-जखेहिं ॥ २ ॥ -कोटिशिलाकर २-जोअणपिहुलायामा दसन्नपव्वयसमीवि कोडिसिला । जिणछक्कतित्थसिद्धा तत्थ अणोगाउ मुणिकोडी ।। १५ ॥ ३-छत्ते सिरम्मि गीवावच्छे उअरे कडाइ जरूसु । जाणू कहमवि जाणू णीया स वासुदेवेण ॥ १८ ॥
SR No.010293
Book TitleJain Sahitya aur Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1942
Total Pages650
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size62 MB
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