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________________ १९४ जैनसाहित्य और इतिहास भी एक भौहिरेमें बारहवीं शताब्दीकी प्रतिमायें हैं। यह भौहिरा एक पहाड़ीके मूलमें है और आसपास पहाड़ियाँ हैं । क्षेत्रसे आध मीलके फासिलेपर 'पवा' नामक गाँव भी है और एक विशाल सरोवर । बेतवा ( वेत्रवती) नदी भी कोई डेढ़ मीलपर है । यह पवा' नाम भी पावाके बहुत निकट है । पं० आशाधरजीने अपने क्रिया-कलापमें निर्वाण-काण्डकी जो गाथायें दी हैं उनमें 'पावाए गिरिसिहरे ' पाठ है। उससे भास होता हैं कि 'पावा' गाँवका नाम होगा और उसीके पासका कोई गिरि-शिखर मोक्ष-स्थान होगा। पर यह तो एक कल्पना है । ढूँढ़-खोज करनेवालोंको दिशासूचन-भरके लिए लिख दी है। गजपन्थ सत्तेव य बलभद्दा जदुवरिंदाण अट्ठकोडीओ। गजपंथे गिरिसिहरे णिव्वाण गया णमो तेसिं ॥ ७ ॥ इस गाथामें गजपंथगिरिसे सात बलभद्र और यादव राजादि आठ करोड़ मुनियोंका मोक्ष-गमन बतलाया है। गाथाका एक और अधिक प्रचलित पाठ है 'संते जे बलभद्दा' जिससे सातकी संख्याका बोध नहीं होता। दो बलभद्र, अर्थात् रामचन्द्र और बलदेव (कृष्णके भ्राता) का तो यह निर्वाण-स्थल है नहीं । क्योंकि जैसा कि आगे बतलाया है, उत्तरपुराणके अनुसार रामचंद्रका निर्वाण सम्मेदशिखरसे हुआ है और बलदेवका मोक्ष हुआ ही नहीं है, वे महेन्द्रस्वर्गको गये हैं । अन्य सात बलभद्र कहाँसे मुक्त हुए हैं, उत्तरपुराणसे इसका कोई पता नहीं चलता। उसमें बलभद्रोंके वैराग्य और दीक्षाके वर्णन तो दिये हैं, परन्तु मोक्ष-स्थानोंके निर्देशका अभाव है। ग्रंथान्तरोंसे भी इसका कुछ पता नहीं चलता । और यह निर्वाणकाण्डमें भी नहीं बतलाया कि गजपंथ कहा था। वर्तमान गजपंथ नासिकके निकट मसरूल गाँवके पासकी एक छोटी-सी पहाड़ीपर माना और पूजा जाता है; परंतु इस क्षेत्रका इतिहास तो विक्रम संवत् १९३९ से १ पवाजीकी कल्पना टीकमगढ़ ( झाँसी )के पं० ठाकुरदासजी जैन बी० ए० से पूछताछ करते समय अचानक ही ध्यानमें आ गई। २ पं० पन्नालालजी सोनीद्वारा सम्पादित · क्रियाकलाप'में यह गाथा तीसरे नम्बरपर दी हुई है ।
SR No.010293
Book TitleJain Sahitya aur Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1942
Total Pages650
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size62 MB
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