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________________ हमारे तीर्थक्षेत्र १९३ ' नद्यास्तटे जितरिपुश्च सुवर्णभद्रः । ' अर्थात् नदीके तटसे कर्मशत्रुको जीतनेवाले सुवर्णभद्रका मोक्ष हुआ । , अभी तक इस दूसरे पावागिरिका कोई पता नहीं था; परन्तु अब कुछ धनिकों और पण्डितोंने मिलकर इन्दौरके पास ( ऊन नामक स्थानको पावागिरि बना डाला है और वहाँ धर्मशाला, मन्दिर आदि निर्माण कराके बाकायदा तीर्थ स्थापित कर दिया है । पिछले समय में तीर्थ किस तरह निर्माण होते रहे हैं, मानो उसका यह एक ताजा उदाहरण है । 'महाराष्ट्रीय ज्ञान - कोष' के अनुसार उनमें एक जैन मंदिर बारहवीं सदीका है । उसमें धारके परमार राजाका शिलालेख है । परन्तु जब तक किसी प्राचीन लेखमें उक्त स्थानका नाम ' पावागिरि' लिखा हुआ नहीं मिलता, तब तक ऊनके विषय में इतना ही कहा जा सकता है कि वह एक प्राचीन स्थान है और वहाँ किसी समय जैनोंने बड़े बड़े मन्दिर बनवा कर अपना वैभव और धर्म-प्रेम प्रकट किया था । एक बात और है। निर्वाण-काण्डकी बहुत-सी प्रतियों में यह गाथा ही नहीं है । पं० पन्नालालजी सोनीने अपने सम्पादित किये हुए ' क्रिया-कलाप ' में इस गाथा - पर टिप्पण दिया है कि ' गाथेयं पुस्तकान्तरे नास्ति ।' यहाँके ' ऐलक पन्नालालसरस्वती-भवन' के गुटका (ज) में जो निर्वाण-काण्ड है, उसमें भी यह नहीं है | यह गुटका कमसे कम दो सौ वर्षका पुराना जरूर होगा । इसलिए संभव है कि यह गाथा प्रक्षिप्त ही हो । किसी लेखकने यह पाठ टिप्पण में लिख लिया हो और पीछे वह मूलमें शामिल हो गया हो । इन दो पावाओंके विषय में विचार करते समय हमारा ध्यान बुन्देलखण्डके दो अतिशय क्षेत्रोंकी तरफ भी जाता है, जिनमें से एक टीकमगढ़ ( ओरछा स्टेट ) से तीन मील दूर है और जिसे ' पपौरा ' कहते हैं । वहाँ बारहवीं शताब्दीसे लेकर उन्नीसवीं शताब्दी तकके बने हुए ८२ विशाल मन्दिर हैं । विक्रम संवत् १२०२ की चंदेल राजा मदनवर्मदेव के समय की दो प्रतिमायें भी वहाँ हैं । इस स्थान से दो मील पर , 6 उर' नामकी एक नदी है और रमन्ना ( रमण्यारण्यक ) नामका बहुत घना जङ्गल मन्दिरोंके परकोटेसे ही लगा हुआ है । इस पपौरा या पपौरका पापापुर या पपउरसे मेल बैठता है । दूसरा अतिशयक्षेत्र ' पवाजी' कहलाता है, जो तालबेहट ( ललितपुर और झाँसी के बीच ) से मील उत्तरकी ओर है । वहाँ १३
SR No.010293
Book TitleJain Sahitya aur Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1942
Total Pages650
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size62 MB
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