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________________ हमारे तीर्थक्षेत्र १९५ ही प्रारंभ होता है जब कि इसे नागौर (मारवाड़ ) के भट्टारक क्षेमेन्द्रकीर्तिने स्थापित किया था। उन्होंने मसरूल गाँवमें आकर वहाँके पाटीलसे (मालगुजारसे) कहा कि मैं इस पासकी पहाड़ीपर जैन-तीर्थ बनाऊँगा और तुम्हारे इस गाँवमें धर्मशाला । इसके लिए मुझे जगह चाहिए । गाँवका पाटील उस समय उपस्थित नहीं था, उसके लड़के थे । उनसे जगहका सौदा तय नहीं हुआ तब भट्टारकजी अपने परिकरके साथ दूसरे गाँव चले गये जो म्हसरूलसे पास ही है और उसके निकट भी एक दूसरी पहाड़ी है। उस पहाड़ीमें भी कुछ गुफायें और मूर्तियाँ हैं, इसलिए उन्हें अगत्या वहीं तीर्थ स्थापन करनेका विचार करना पड़ा । इधर जब वृद्ध पाटील अपने घर आया और उसने सब वृत्तान्त सुना तब लड़कोंसे अप्रसन्न हुआ और बोला, "तुमने गलती की। जैनी लोग बड़े मालदार हैं, यहाँ धर्मशाला और मंदिर बन जानेसे हम लोगोंको और बस्तीवालोंको बहुत लाभ होगा।" आखिर वह तत्काल ही अपनी गाड़ी जोत कर उस गाँवको चल दिया और भट्टारकजीसे मिला। उसने मनामुनू कर सौदा पक्का कर लिया और उन्हें वापस लौटा लायो । इसके बाद भट्टारकजीने धर्मशाला बनवाई और संवत् १९४२ में शोलापुरके सेठ नानचंद फतेहचंदजीने उनकी प्रेरणासे मंदिर-निर्माण कराया जिसकी प्रतिष्ठा १९४३ में की गई। गजपंथकी पहाड़ीपर जो गुफायें और प्रतिमायें थीं उनका तो अब भक्तोंद्वारा इतना रूपान्तर हो गया है कि प्राचीनताका कोई चिह्न भी वहाँ बाकी नहीं रहा है। परन्तु उस समय भी यहाँ कोई ऐसा लेख या चिह्न नहीं था जिससे यह विश्वास किया जा सके कि १९३९ के पहले कभी इसका नाम गजपंथ रहा होगा। दिगम्बर जैन डिरेक्टरीमें जो सन् १९१३ में प्रकाशित हुई थी, इस क्षेत्रका कुछ वर्णन दिया है । उसमें यहाँकी प्राचीनताका कोई उल्लेख नहीं है, अन्तमें सिर्फ इतना लिखा है कि “ यहाँ एक खंडित शिलालेख मिला है । जिसका सारांश यह है-' संवत् ११४१ में हंसराज-माता गोदी बाईने माणिक स्वामीके दर्शन करके अपना जन्म सफल किया' ।” यह शिला-लेख कहाँ है और इसका मूलरूप क्या है, यह जाननेका अब कोई १ लेखक लगभग २५ वर्ष पहले म्हसरूलमें लगभग दो महीने लगातार रहा था और उक्त वृद्ध पाटीलसे प्रायः हररोज ही मिलता था । पाटीलने स्वयं अपने मुँहसे यह इतिहास कहा था।
SR No.010293
Book TitleJain Sahitya aur Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1942
Total Pages650
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size62 MB
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