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________________ जैन रत्नाकर ३-काय जोग सावध प्रवर्तायो होय ४-सामायिक नी सार संभाल न करी होय ५-अण पूरी सामायिक पारी होय सामायिक में स्त्री कथा, भक्त कथा, देश कथा, राज कथा, कीधी होय तस्स मिच्छामि दुक्कडं । सामायिक काल एक मुहूर्त का है। सामायिक में एक मुहूर्त तक पापकारी प्रवृत्तियों का त्याग किया जाता है। जब वह एक मुहूर्त का समय पूरा हो जाता है तब उस सामायिक में भूल से या जान कर भी कोई मामूली गल्ती हो गई हो, तो उसकी विशुद्धि के लिये प्रायश्चित स्वरूप यह पाठ किया जाता है। (विशेष गल्ती के लिये साधु साध्वियों के पास प्रायश्चित करना चाहिये। - इस पाठ का अर्थ यह है- श्रावक के वारह व्रतों में से सामायिक नौवां व्रत है। इस व्रत में अर्थात जो मैंने सामायिक व्रत का पालन किया है- उसमें यदि कोई अतिचार दोष लगा हो, तो मैं उसकी आलोचना करता हूं। अतिचार शब्द का अर्थ है-जिसका परित्याग किया है उसी को करने के लिये तैयार हो जाना ) सामायिक में यदि मैंने इतने काम किये हों तो उन सबका मैं प्रायश्चित करता हूं अर्थात् मेरे किये हुए सब पाप निष्फल हों- मिथ्या हों।
SR No.010292
Book TitleJain Ratnakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKeshrichand J Sethia
PublisherKeshrichand J Sethia
Publication Year
Total Pages137
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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