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________________ इद देखा पिछला हाल उपकारी मुनि समझ रामायण स्वर्ग के, छोड़े सुख अनेका । न कर, साधी सेवा विशेषा ॥ दौड़ नृप के दिल रोष पारा, मारो कपि हुकम करारा देव दिल गुस्सा आया, बानर सेना विस्तार, वैक्रिय चारों ओर फैलाया || दोहा बानर सेना देखकर, घवराया भूपाल शूर मंगा कर युद्ध किया, बानर दल विक्राल || बानर दल विकाल देख, राजा की सामर्थ्य हारी । मन में किया विचार, कपि दलने सब फौज विदारी || क्या आपत्ति बानर दल, चहुं ओर अति भयकारी || मारे मरते नहीं शस्त्र, आदि सब विद्या हारी ॥ दौड़ देव कारण दिल द्वारा, भाव भक्ति सत्कारा | और करी नम्रता भारी, देव नरेन्द्र ने आकर मुनि आगे अर्ज गुजारी ॥ चौपाई कर वन्दना पूछे भूपाल, करुणानिधि कहो पूर्व हाल पूर्व कृत्य नृप बानर जो जो ज्ञान बले मुनि भाषे सो सो 18 दोहा सावस्थ मंकार | मंत्रीश्वर का पुत्र तू, दत्त नाम तेरा हुआ, धर्मी चित्त उदार ॥ धर्मी चित्त उदार, एकदा विरक्त हुआ भोगों से । अनादि काल से पाया दुख मै जन्म मरण रोगो से |
SR No.010290
Book TitleJain Ramayana Purvarddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShuklchand Maharaj
PublisherBhimsen Shah
Publication Year
Total Pages449
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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