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________________ बालि-वंश समझा यह संसार असारा, बंध मोक्ष का हाल विचारा । रजो हरण मुखपती धारी, पुनजन्म की गति निवारी ॥ दोहा वज्र सुकंठादिक हुए, अनुक्रम से राजान 1 बीसवें जिनवर के समय, घन वाहन बलवान ॥ चौपाई बानर द्वीप घन वाहन नरेश, लंका मे हुवा तडित केश ॥ आपस मे है प्रम घनेरा, शत्रु कोई आवे नही नेरा ॥ दोहा लंकपति गया भ्रमण को, निज नंदन वन मांह । थी संग में महारानियां, खेले अति उत्साह || खेले अति उत्साह उधर एक, वानर चलकर आया । चपल जात चालाक, झपट कर महारानी पर आया । सहसा झपट पछाड़ तुरत, हृदय पर हाथ चलाया || रानी का लिया कुच पकड़, नाखूनी घाव लगाया ॥ दौड़ घबरा रानी चिल्लाई, दौड़ दासी सब आई। मचा कोलाहल भारा, सुन राजा ने भेद कपि के वाण खैच कर मारा || : ३७ ww दोहा कपि बाण खाकर भागा, गिरा मुनि के पास । शरण दिया नमोकार का, सर्द्ध हुआ सुरवास || उदधि कुमार हुआ देव, जिस समय अवधि ज्ञान मे देखा । किस कारण हुआ देव आन के, चढी पुण्य की रेखा ॥ 1
SR No.010290
Book TitleJain Ramayana Purvarddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShuklchand Maharaj
PublisherBhimsen Shah
Publication Year
Total Pages449
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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