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________________ रामायण --- ----- -rrrrrrrrrrrrrrrrr. * बालि-वंश दोहा उसी समय उस काल में, मे "धामिदापुर" नाम । नगर अति रमणीक था, मानो है स्वर्धाम ।। भूप “अतिन्द्र” विद्याधर, श्रीमती राणी अति सुन्दर । "श्री कंठ” पुत्र सुखदाई, "गुण माला” एक सुता कहाई ।। दोहा रत्नपुरी नगरी भली, "पुष्पोत्तर" तहां राय । पुष्पोत्तर सुत के लिये, गुणमाला की चाह ।। गुणमाला की चाह, जिन्होने मांगी थी खगराजा से। बने परस्पर प्रेम हमारा, तेरा इस शुभ नाता से ॥ समझाया नृप ने अपनी, अति बुद्धि और वाचाला से । सन्तोष जनक नही मिला, उत्तर कोई अतिन्द्र भूपाला से ।। समझ उसको नही आई, लंक पति को ब्याही। मूल दुःख की यह दाता, “पुष्पोत्तर" खेचर को सुनकर दिल मे अमर्प आता ।। दोहा पुष्पोत्तर की पुत्री, “पद्मावती” तसु नाम । चली सैर करने लिये, हुई जिस समय श्याम || अपनी मस्तानी चाली से, भानु अस्ताचल जाता था। उदयाचल से चन्द्रमा भी, शुभ कदम नढाये आता था । इस ओर मध्य भूमण्डल पर, चेरी जन से परिवरि हई।
SR No.010290
Book TitleJain Ramayana Purvarddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShuklchand Maharaj
PublisherBhimsen Shah
Publication Year
Total Pages449
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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