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________________ शिष्य- प्रश्न शूरवीर बांके दुर्दन्ते, योद्धाओं का वाना है । इस को यहाँ पर करू' समाप्त आगे हाल सुनाना है || दौड़ विपत्ति जो आई है, दृढ वन सभी सही है । सुन सुन कर होवोगे गुम, आदि अन् पर्यन्त | सभी घर कर के ध्यान सुनो तुम ॥ चौपाई भरत क्षेत्र मे देश पुरलंका, स्वर्ण मयी है कोट दुर्वक्का || अन्य नाम एक राक्षस द्वीप, अति अनुपम लक समीप ॥ वर्तमान थे अजितजिनेश, "घन वाहन" हुए आदि नरेश । दोहा राक्षस सुत को राजदे, अजित स्वामी पास | संयम ले करणी करी, पहुॅचे मोक्ष निवास ॥ १७ पहुॅचे मोक्ष निवास जिन्होसे, दुख ने किया किनारा है । तप जप दुष्कर करनी कर, किया आत्म ज्ञान उजारा है ।। मानिन्द मिश्री मक्खी के, जिन दोनो लोक सुधारा है ॥ अवसर प्राप्तं देख राक्षस, सुत ने सयंम धारा है || दौड़ देव राक्षस अधिकारी, आप गये मोक्ष सिधारी । असंख्य हुवे हैं राजा, दशवें जिनवर समय कीर्ति धवल नरेन्द्र ताजा ॥ .०४०
SR No.010290
Book TitleJain Ramayana Purvarddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShuklchand Maharaj
PublisherBhimsen Shah
Publication Year
Total Pages449
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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