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________________ मंगल-प्रार्थना । (तर्ज-बालम आय वसो मोरे मन में-) प्रथम नमो देव अरिहन्ता ।-स्थायी सुरनर मुनि जन ध्यान धरत है। प्रेमी जन नित नाम रटत है ॥ कल कलेश छिन माहि कटत है। ऐसो नाम भगवन्ता ॥१॥ संकट हारी मंगल कारी । सर्वाधार सर्व हित कारी ॥ किम वरण मै महिमा तिहारी । गाय यके श्रुति सन्ता ॥२॥ दीन दयाल दया के सागर । त्रयी गुण धारी जगत उजागर ।। कर ही कृपा प्रभु निज भगतन पर। सिद्ध रूप गुण वन्ता ॥३॥ “शुक्ल" प्रभु हम शरणागत है। विद्या बुद्धि वर मांगत है ॥ दीनों की बस आप ही पत है । केवल ज्ञान अनन्ता ।।४। ।
SR No.010290
Book TitleJain Ramayana Purvarddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShuklchand Maharaj
PublisherBhimsen Shah
Publication Year
Total Pages449
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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