SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 360
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३२० रामायण ~ ~ hon they •hco thur *hoo cho tur Ohco लई जिस पे फांसी, सभी सुख तजे हैं। उसी गुल से लौ मै, लगाई हुई हूं॥४॥ इसी में खुशी हूं, तजू मैं जिस्म को । अदम के इरादे पे, आई हुई हूं ॥५॥ करो गर कलम सर, तो अहसान मानू। यह लो मै तो सिर को झुकाई हुई हूँ ॥ ६ ॥ दोहा (लक्ष्मण) गुण माला तू किस, लिये होती है बेजार । मैं लक्ष्मण वह सो रहे, राम और सिया नार ।। रामचन्द्र सिया नार, हमी तीनो बन को जाते है । यदि नहीं विश्वास, देख लो तुमको दिखलाते हैं । नामांकित मुद्रिका पढ़लो, तुम खुद ही' समझाते हैं। निश्चय कर लो सूर्य वंशी, क्षत्रिय कहलाते हैं । दौड़ सिया के दर्शन पाओ, उतर अब नीचे आओ। सुमित्रा का जाया हूँ, सेवा करने मैं भाई के संग बन मे आया हूँ॥ दोहा लक्ष्मण के ऐसे सुने, बनमाला ने बैन । परीक्षा कारण देखने, लगी उठाकर नैन । दृष्टि झट झुक गई नीचे को, मानिन्द रवि के तेज बड़ा । शुभ थे बत्तीस सभी लक्षण और शूरवीर अति तना खड़ा ॥ बनमाला किया विचार नही, कोई और इन्हो की शानी की । नामांकित मुद्रिका पढ़ फिर दर्श किया सिया रानी का ॥
SR No.010290
Book TitleJain Ramayana Purvarddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShuklchand Maharaj
PublisherBhimsen Shah
Publication Year
Total Pages449
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy