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________________ वनमाला ३१६ देख मनुष्य को चमक पड़ी, किसने आ फांसी खोली है। कोई नकली बना समझ लक्ष्मण, बनमाला ऐसे बोली है ।। दोहा (बनमाला) कौन यहाँ तू छिप रहा, आन किया मोहे तंग । इस असली रग पे तेरा, चढ़े न नकली रंग ॥ चढ़े न नकली रंग, खड़ा क्यो बाते बना रहा है। चले न तेरे दम गजे क्या पट्टी पढ़ा रहा है। बनवास गये है राम लखन, किसको बहकाय रहा है। जली हुई को मुझे कौन तू , आकर जला रहा है। दौड़ प्रण हित मरना ठाना है, प्राण यह तुच्छ जाना है। नही त्यागूगी निश्चय 'अपना , शील धर्म के सिवा नही मुझको कोई भी शरणा॥ दोहा ( बनमाला ) अलग जरा हट जाइये, मुझे नहीं कुछ होश । फांसी लेने दीजिये, रहे आप खामोश ॥ गाना नं.४३ (बनमाला का ) क्यो रोकें मुझे, मै सताई हुई हूँ। तपे जिगर से दिल, जलाई हुई हूँ ॥ १ ॥ तुझे जिसकी चाहना, नही वह यहाँ पर । यह मुर्दा जिस्म, मै उठाई हुई हूँ॥२॥ जावो यहाँ से न, हमको सतावो। रंजो अलम् की दुखाई हुई हूं ।। ३ ।। chu Dhco - हु thur *hot
SR No.010290
Book TitleJain Ramayana Purvarddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShuklchand Maharaj
PublisherBhimsen Shah
Publication Year
Total Pages449
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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