SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 29
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ नगरी के उपवन मे दीक्षा ग्रहण की। नौ महीने बाद अगहन शुक्ला ११ को केवल ज्ञान की प्राप्ति हुई। एक हजार वर्ष तक चारित्र पाला । पश्चात् वैशाख कृष्ण १० को मोक्ष मे पधारे। इक्कीसवे श्री नमिनाथ तीर्थकर के ही समय कम्पिल नगर में महा हरी राजा मेरा देवी माता के हरीषेण नामक १० वे चक्रवर्ती हुवे । दीक्षा लेकर यह भी मोक्ष मे गये। इनके कुछ समय बाद राजग्रही नगरी में विजय राजा वप्रावती रानी के जयसेन नामक राजकुमार हुआ और आगे चल कर ११ वे चक्रवर्ती जयसेन हुआ । यह भी राज छोड़ दीक्षा लेकर मोक्ष पहुंचे। इक्कीसवे तीर्थकर के निर्वाण पाने के पांच लाख वर्ष के पश्चात् राजा समुद्र विजय की शीवादेवी रानी से श्रावण शुक्ला ५ को २२ वे तीर्थकर श्री नेमिनाथ जी हुए। आप ३०० वर्षे गृहस्थाश्रम मे रहे । विवाह न करते हुए एक वर्ष दान देकर अपनी राजधानी के उपवन मे श्रावण शुक्ला ६ को दीक्षा ली। ५४ दिन के पश्चात् क्वार कृष्ण अमावस्या को केवल ज्ञान होगया। सात सौ वर्ष तक दीक्षा पाली । सर्व कर्म क्षय करके, आपाढ़ शुक्ला ८ को मोक्ष पधारे। ग्यारहवें चक्रवर्ती महाराज जयसेन के निर्वाण के हजारो वर्ष बीत जाने के पश्चात् हरीवंश मे यदुनामक राजा हुआ। यदु के शौरी और सुवीर नाम के दो पुत्र हुए। शौरी के पुत्र अंधक विष्णु । अंधक के दश पुत्र हुए । जो शास्त्र मे दशोदशार के नाम से प्रसिद्ध है। इन दशो मे से छोटे एक भाई का नाम वसुदेव
SR No.010290
Book TitleJain Ramayana Purvarddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShuklchand Maharaj
PublisherBhimsen Shah
Publication Year
Total Pages449
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy