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________________ १८ किया। साढे सातसौ वर्ष तक दीक्षा पाली। सर्व कर्म क्षय करके ज्येष्ठ कृष्ण ६ को मोक्ष मे पधारे। ___ इन्हीं के समकालीन ६ नौवे चक्रवर्ती महापद्म हुवे । हस्तिनापुर नगर पद्मोत्तर राजा ज्वाला रानी माता थी । अन्त में दीक्षा धारण कर के मोक्ष मे गये । महापद्म चक्रवर्ती के कुछ ही काल के पश्चात् अयोध्या के राजा दशरथ पिता अपराजिता रानी की कूरख से आठवें बलदेव श्री रामचन्द्रजी पैदा हुए । दूसरी रानी सुमित्रा इसका वास्तव मे कैकेयी नाम था परन्तु जब कैकेयी रानी भरत की माता का विवाह राजा दशरथ से स्वयंवर मंडप करके हा उस समय दो कैकयी होने के कारण प्रथम का सुमित्रा रख दिया । इसलिए यह सुमित्रा के नाम से प्रसिद्ध हुई । सुमित्रा के अष्टम वासुदेव श्री लक्ष्मणजी हुवे । (इन को नारायण भी कहते है)। तीसरी रानी कैकेयी के भरत राजकुमार हुआ। चौथी सुप्रभा रानी से शत्रुध्नजी हुवे उस समय इन से पूर्वजात लकापुरी मे राजा रत्नश्रवा पिता और कैकसी माता से पैदा हुवा दशकन्धर राजा प्रतिवासुदेव लंका का क्या तीन खंड का अधिपति था। लक्ष्मण जी रावण को मार और तीन खंड के अधिपति बने। बीसवे तीर्थकर को मोक्ष मे गये छः लाख वर्ष हुवे ही थे कि श्रावण कृष्णा अष्टमी को मथुरापुरी मे विजय राजा और विप्रा देवी माता के इक्कीसवे तीर्थकर श्री नमिनाथ जी का जन्म हुवा। ६ हजार वर्ष तक गृहस्थ मे रहे। फिर आपाढ़ कृष्ण ६ को मथुरा
SR No.010290
Book TitleJain Ramayana Purvarddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShuklchand Maharaj
PublisherBhimsen Shah
Publication Year
Total Pages449
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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