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________________ २०८ रामायण -AAAAAA. पाँच अणु व्रत पूर्ण पालो, शिक्षा पर ध्यान जमाना होगा। पति सेवा में तन-मन-धन, क्या सभी निछावर करना होगा । पति कदाचित् क्रोधित होवे, विनय सहित खुश करना होगा। झूठे ढोग सभी कुछ तज कर, जिनवर का शरणा होगा । विद्या पढ़ निज पर हित करना, देव गुरु धर्म लखना होगा। मनुष्य जन्म का यही सार, बेटी तुझको चखना होगा। समय पड़े पर देश-धर्म की, खातिर बेटी मरना होगा। सद्ग्रन्थों को पढ़ो पढ़ाओ, ध्यान शुक्ल धरना होगा। दोहा काल अनादि का यही, दुनिया का व्यवहार । समयानुसार बेटी सभी, करते हो लाचार ।। राजा जनक की शिक्षा सीता को गाना नं. 8 तर्जः-- तू मेरी एक ही सीता बेटी है, कोई और नहीं दो चार नहीं। फिर राज की सारी सृष्टि मे, तुझसे बढ़कर कोई प्यार नहीं । है पुण्यवान बेटी सीता, सुख पाया पूर्वले जप तप से । और मंगलीक दर्शन तेरे, मम प्रजा रही नित उत्सव में ॥२॥ तू जैन धर्म की वेत्ता है, सर्वज्ञ शास्त्र की ज्ञाता है । नरनारी कहते होंगे जनक, सूर्य को दीपक दिखाता है.॥३॥ सब नय प्रमाण क्या स्याद्वादा, सप्तभंगी मर्म की माहिर है। फिर चौसठ विद्या है प्रवीण, और क्षमाशील जग जाहिर है ॥४॥ तब मात-पिता के विरह का दुःख, सर्वज्ञ देव ही जानते है । व्यावहारिक लक्षण दृष्टि से, नरनारी कुछ पहचानते हैं ॥५॥
SR No.010290
Book TitleJain Ramayana Purvarddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShuklchand Maharaj
PublisherBhimsen Shah
Publication Year
Total Pages449
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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