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________________ सीता स्वयम्वर २०७ www दोहा देख धीरता सकल जन होते है हैरान । क्या छोटी सी उमर मे, इतने है बलवान् ।। अष्टादश लड़की राजो ने, लक्ष्मण को परणाई है। देख पुन्य शक्ति सब ही ने, अपनी प्रीत बढ़ाई है ॥ श्री "कनक” भ्राता था जनक भूप का, पुत्री अति सुखदाई है। "शुभ भद्रावलि" नाम जिसका, वह भरत कुंवर को व्याही है। प्रति धूम धाम से विवाह किया, यहां कथने मे नही आया है। और चन्द्रगति खा धनुप; आप होकर उदास चल धाया है। बाकी सब ने प्रस्थान किया; मैदान राम ने पाया है। विदा समय विदेही ने. सीता को वचन सुनाया है। ॥ विदेही माता की सीता को शिक्षा ॥ गाना नम्बर ८ तू बेटी ! आज से हुई पराई, तुझे अवधपुर जाना होगा। सास सुसर और परिजन सब का; पति का हुक्म बजाना होगा। नित्य नियम का साधन निशदिन, पतिव्रत धर्म निभाना होगा। पीछे सोना पहिले उठना, नित्य शुभ कर्तव्य कमाना होगा। ।। विधि सहित भोजन शुद्ध करना, पानी नित छन वर्तना होगा। निरर्थक बातों को तजकर, आत्मज्ञान चरचना होगा । क्रोध और माया ममता, इनको दूर भगाना होगा। कुल मर्यादा नही विसरना, लाज शरम मन धरना होगा। ऐश्वर्य को गर्व न करना, अन्न धन दान दिलाना होगा। संयोग मिले तुझको सुखदाई, पुण्य अखुट कमाना होगा। अपने सुख का ध्यान न रखना, दुखियो का दुःख हरना होगा। शील रत्न का अमूल्य गहना, तुझको अंग सजाना होगा ।
SR No.010290
Book TitleJain Ramayana Purvarddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShuklchand Maharaj
PublisherBhimsen Shah
Publication Year
Total Pages449
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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