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________________ १८० रामायण दोहा जनक सूप ने जब लखा, राजकुमर का रूप । रानी से फिर उस समय, यों बोले वर भूप ।। पुण्य उदय अपना हुआ आज अति सुख कार । युगल पने आकर हुवा पैदा राज कुमार ॥ पैदा राजकुमार खुशी का, अवसर मिला जबर है। देख देख मुन्व इनका रानी, आता नही सबर है। क्या जन्मे आकर नल कुबेर, कुछ लगती नही खबर है। दमक रहा भानु मानिन्द, मस्तक जैसे इन्द्र है ॥ बुलंद सितारा इनका, समान कोई नहीं जिनका । रूप.क्या तेज निराला, देखो रानी बहन भाई क्या एक ही सांचे दाला॥ दोहा राजा प्रजा सब खुशी, घर घर मंगलाचार। जनक भूप ने दान के, खोल दिये भंडार ।। उत्सव का कुछ पार नहीं, अति खुशी सभी दिलछाई है। और जय जय कार की, ध्वनि सहित दी सबने आन बधाई है। धाइयाँ पांच लगी पालन, सब आगे पीछे फिरते है । अब होनहार के आगे चल, देखो क्या रंग बिखरते है।
SR No.010290
Book TitleJain Ramayana Purvarddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShuklchand Maharaj
PublisherBhimsen Shah
Publication Year
Total Pages449
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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