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________________ १० आठवें तीर्थकर के निर्वाण पद की प्राप्ति के नव्वे करोड़ सागरोपम के बाद अगहन कृष्णा ५ को काकन्दी नगरी मे राजा सुग्रीव के घर उनकी रामा नामक रानी की कोख से नवे तीर्थकर श्री सुविधिनाथ जी का जन्म हुआ। आप एक लाख पूर्व तक संसार मे रहे फिर उसी नगरी के उपवन मे अगहन कृष्ण ६ को दीक्षा ग्रहण की। दीक्षा ग्रहण करने के चार मास बाद कार्तिक शुक्ल ३ को केवल ज्ञान प्रप्त हुआ। एक लाख पूर्व तक चारित्र पाला और अपने सम्पूर्ण कर्मो का क्षय कर भाद्रपद शुक्ला ६ को मोक्ष मे पधारे । दशवे तीर्थकर श्री शीतलनाथ जी थे। इनका जन्म नौवें तीर्थकर के परम पद प्राप्त करने के करोड सागरोपम के पीछे का है । उस दिन माघ कृष्णा १२ का दिन था । इनके पिता दृढरथ और माता नन्दादेवी थी । गृहस्थाश्रम मे रह कर इन्होने पचहत्तर हजार पूर्व बिताये । तब संसार से चित्त की उपराम । अवस्था मे अपनी राजधानी ही के उपवन में माघ कृष्ण १२ को दीक्षा ग्रहण की । इसके पश्चात् दूसरे वर्ष के पौष कृष्ण १४ को केवल ज्ञान की प्राप्ति हुई और पच्चीस हजार पूर्व चारित्र पाला फिर यह अपने सम्पूर्ण कम का क्षय करके वैशाख कृष्णा २ को मुक्ति मे पधारे । ग्यारहवे तीर्थकर श्र ेयांसनाथ जी थे, इन का जन्म फाल्गुन कृष्ण १२ को दशवे तीर्थकर के निर्वाण काल के सौ सागर छियासठ लाख छब्बीस हजार वर्षं न्यून एक करोड सागरोपम के
SR No.010290
Book TitleJain Ramayana Purvarddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShuklchand Maharaj
PublisherBhimsen Shah
Publication Year
Total Pages449
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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