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________________ को अनुमान छ मास बाद आपको केवल ज्ञान की प्राप्ति हुई। एक लाख पूर्व चरित्र पाला और अपने कर्मो का क्षय कर मार्गशीर्ष कृष्णा ११ के दिन मुक्ति को प्राप्त किया था। नौ हजार करोड सागरोपम जब छठे तीर्थकर के निर्वाण का काल बीत चुका, उस समय ज्येष्ठ शुक्ला १२ को वाराणसी नगरी जिसे आज काशी या बनारस भी कहते है-मे राजा प्रतिष्ठ के घर एक बड़े ही सुन्दर सवल और दिव्य शरीरी बालक की उत्पत्ति हुई । माता और पुत्र के नाम क्रमशः पृथ्वी देवी और सुपाश्वे थे। यह ही आगे चलकर सुपाश्वनाथ नाम के सातवें तीर्थकर हुए । इन्होने उन्नीस लाख पूर्व गृहस्थाश्रम में रह कर बाराणसी के उपवन मे ज्येष्ठ सुदि १३ को दीक्षा ग्रहण की । इसके नौ.मास बाद फाल्गुण कृष्णा ६ के दिन आपको केवल ज्ञान की प्रप्ति हो जाने पर सम्पूर्ण कर्मों का क्षय करके फाल्गुण कृष्णा ७ को निर्वाण पद प्राप्त किया। सातवें तीर्थकर के निर्वाण पद मे पधारने को जब सौ करोड़ सागरोपम वीत चुके थे तब पौष कृष्णा १२ को चन्द्रपुरी नगरी मे महासेन राजा के यहा रानी लक्ष्मणा के गर्भ से आठवे तर्थकर भगवान् चन्द्रप्रभु का जन्म हुआ। ये नौ लाख पूर्व संसार मे रहे । पौष कृष्ण १३ को चन्द्रपुरी के उपवन मे दीक्षा ग्रहण की। उसी वर्ष फल्गुण कृष्णा ७ को इन्हे केवल ज्ञान की प्राप्ति हुई। -एक लाख पूर्व चारित्र पाला फिर अपने सम्पूर्ण कर्मो का क्षय कर, यह भाद्रपद कृष्णा ७ को परम पद मोक्ष के अधिकारी बने ।
SR No.010290
Book TitleJain Ramayana Purvarddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShuklchand Maharaj
PublisherBhimsen Shah
Publication Year
Total Pages449
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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