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________________ सुमतिनाथ का जन्म हुआ। आप उनतालीस लाख गृहस्थाश्रम मे रहे फिर वैशाख शुक्ल , को अयोध्या के उपवन । मे आपने दीक्षा व्रत लिया। उसके ठीक बीस वर्ष पश्चात चैत्र शुक्ला ११ को आपने केवल ज्ञान प्राप्त किया । इस के पश्चात् इन्होने भी एक लाख पूर्व तक दीक्षाव्रत का पालन कर और अपने शुक्ल ध्यान के बल से सम्पूर्ण कर्मों का क्षय कर चैत्र शुक्ला ६ के दिन मुक्ति मे पधारे । जब आप गर्भ मे थे, इनकी माता ने बड़ा ही सुन्दर न्याय किया था । वह इस प्रकार था-एक मनुष्य के दो स्त्रियां और एक पुत्र था। इस बालक का पिता बचपन से ही मर चुका था । उपमाता माता से भी अधिक स्नेह उस बालक पर करती थी । बालक माता और उपमाता को भी मार कह कर ही पुकारता था । कुछ समय बाद उन दोनो स्त्रियो में विरोध हो गया । अन्त मे दोनो के बीच झगड़ा इतना बढ़ा कि उन दोना में से प्रत्येक पुत्र को मेरा-मेरा कह कर बड़े ही जो से झगड़ने लगी। अन्त मे निश्चय आपस मे कोई भी न होता देख उन में से हर एक न्यायाधीश के पास गई । राजा ने विद्वानो की सभा में बैठ कर दोनों की अलग अलग बाते सुनी। बालक से पूछा गया । बालक ने उत्तर मे दोनो को अपनी माताएं बताई यहां उपमाता पर और भी गहरा प्रेम प्रकट किया। राजा और उसकी सभा के विद्वान् बडे ही आश्चर्य मे पड़ गये और अतिम निर्णय नही दे सके। रानी ने भी यह विचित्र घटना राजा द्वारा सुनी । रानी ने इस उलझन का सुनते ही सुलझा लिया।
SR No.010290
Book TitleJain Ramayana Purvarddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShuklchand Maharaj
PublisherBhimsen Shah
Publication Year
Total Pages449
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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