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________________ w कार्तिक कृष्ण ५ को इन्हें केवल ज्ञान प्राप्त हुआ । इस के पश्चात् एक लक्ष पूर्व तक आपने चारित्र का पालन किया और जब सारे 'कर्म क्षय हो गये तब वह चैत्र शुक्ल ५ को मुक्ति मे पधारे। जब आप गर्भ में आये थे, उस समय चारो ओर सुकाल सुख और - शान्ति की संभावना होने लगी। बस इसी तत्कालीन परिस्थिति को देखकर इनका नाम संभवनाथजी दिया गया । तीसरे तीर्थकर के निर्धारण पद को प्राप्त करने के बाद दश लाख करोड सागरोपम का समय बीत जाने के बाद माघ शुक्ल १ को अयोध्या में राजा संवर की सिद्धार्थ रानी की कोख से श्री अभिनन्दन जी चौथे तीर्थकर का जन्म हुआ । कहते है कि इनके गर्भ में पधारने और जन्म ग्रहण करने के बीच वाले अव'सर में राजा संवर की शासन नीति से अति ही प्रसन्न होकर चारो ओर के आश्रित माण्डलिक राजाओ ने उन को अभि'नन्दन पत्र भेंट कर उनके लिये अपनी कृतज्ञता प्रकट की । इस के लिए उनकी प्रजा ने उन दिना बड़ा ही आनन्द मनाया और उसी उमड़े हुए चहुं ओर के आनन्द का अनुमान कर माता पिता ने नवजात राज कुमार का नाम अभिनन्दन रख दिया । एक दिन माघ शुक्ला १२ को अपनी पैतृक सम्पत्ति का उनचास लाख पूर्व तक राजो |चत सुख भोगने के पश्चात् इन्होने अयोध्या के निकटवर्ती उपवन मे दीक्षा ग्रहण की। इस के अठाईस वर्ष बाद पौष कृष्णा १४ को केवल ज्ञान की इन्हे प्राप्ति हुई । यो एक लाख पूर्व के अपने दीक्षा व्रत से सम्पूर्ण कर्मों का क्षय कर वैशाख शुक्ल को मोक्ष पधारे । चौथे तीर्थकर मुक्ति मे पधार जाने के नौलाख कराड सागरोपम के पीछे एक दिन वैशाख शुक्ल ८ को अयोध्या के तत्कालीन राजा मेघ की रानी मंगला की कोख से पांचवें तीर्थकर
SR No.010290
Book TitleJain Ramayana Purvarddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShuklchand Maharaj
PublisherBhimsen Shah
Publication Year
Total Pages449
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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